जगदीप धनखड़ का पहला सार्वजनिक संबोधन: नैतिकता और वसुधैव कुटंबकम की बात
नई दिल्ली में पुस्तक लॉन्चिंग कार्यक्रम
नई दिल्ली : पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मनमोहन वैद्य की पुस्तक 'हम और यह विश्व' के विमोचन समारोह में भाग लिया और मंच पर अपने विचार साझा किए। धनखड़ ने कहा कि राष्ट्र की परिभाषा को संकीर्ण कर दिया गया है और यह भी बताया कि संस्थाएं व्यक्तिगत संघर्षों से अधिक प्रभावी ढंग से कार्य कर सकती हैं। उन्होंने वसुधैव कुटंबकम की अवधारणा पर आधारित इस पुस्तक को भविष्य के निर्माण के लिए प्रेरणादायक बताया।
कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता
फ्लाइट की चिंता के बावजूद कर्तव्य नहीं छोड़ा
कार्यक्रम के दौरान, जब धनखड़ बोल रहे थे, एक युवक उनके पास आया और उनकी उड़ान का समय बताया। इस पर धनखड़ ने तुरंत कहा, "मैसेज आ गया है। समय सीमा है, लेकिन मैं अपनी जिम्मेदारी नहीं छोड़ सकता।" उनके इस उत्तर पर पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। उन्होंने आगे कहा कि उनका अतीत इस बात का प्रमाण है कि वे हमेशा अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित रहे हैं।
नैरेटिव के जाल से बचने की सलाह
लोग नैरेटिव के जाल में फंस सकते हैं...
धनखड़ ने आगे कहा कि नैरेटिव के चक्कर में कोई भी फंस सकता है। उन्होंने कहा, "मैं अपने उदाहरण का उल्लेख नहीं कर रहा, लेकिन लोग नैरेटिव के जाल में फंस सकते हैं। व्यक्तिगत रूप से इससे कोई नहीं लड़ सकता, लेकिन संस्थाएं इससे लड़ सकती हैं।" उनके इस विचार ने सभी उपस्थित लोगों को सोचने पर मजबूर किया कि कैसे बड़ी संस्थाएं समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं।
पुस्तक की प्रेरणादायक अवधारणा
'हम और यह विश्व' की प्रेरणा
धनखड़ ने पुस्तक के बारे में कहा कि इसमें वसुधैव कुटंबकम की अवधारणा को विशेष रूप से उजागर किया गया है। उन्होंने कहा कि जो लोग इसे पढ़ेंगे, वे अपने गौरवशाली अतीत को समझेंगे और यह पुस्तक निश्चित रूप से जागरूकता लाएगी। उनका मानना है कि यह पुस्तक आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।
इस्तीफे के बाद का पहला संबोधन
पहला सार्वजनिक संबोधन
यह कार्यक्रम जगदीप धनखड़ के लिए विशेष था क्योंकि यह उनका उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद पहला सार्वजनिक संबोधन था। उन्होंने 21 जुलाई 2025 को स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया था। इस अवसर पर मनमोहन वैद्य, विशिष्ट अतिथि विष्णु त्रिपाठी और सद्गुरु ऋतेश्वर जी महाराज भी उपस्थित थे।
यह कार्यक्रम न केवल पुस्तक के महत्व को उजागर करता है, बल्कि धनखड़ की विचारधारा और उनके कर्तव्य के प्रति दृढ़ता को भी दर्शाता है। उनके विचारों ने समाज को प्रेरित किया कि वे अपनी जिम्मेदारियों को समझें और राष्ट्र के लिए कार्य करें।
