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जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति पद के लिए संभावित नामों की चर्चा

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, जिससे राजनीतिक हलचल मच गई है। उनके इस्तीफे के बाद कई नेताओं के नाम उपराष्ट्रपति पद के लिए चर्चा में हैं, जिनमें हरिवंश नारायण सिंह का नाम प्रमुख है। इस लेख में जानें कि धनखड़ के इस्तीफे के पीछे क्या कारण हो सकते हैं और नए उपराष्ट्रपति के लिए कौन-कौन से नाम सामने आ रहे हैं।
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जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति पद के लिए संभावित नामों की चर्चा

जगदीप धनखड़ का इस्तीफा और राजनीतिक हलचल

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, जिससे राजनीतिक माहौल में हलचल मच गई है। उनके इस्तीफे के बाद विभिन्न नेताओं के साथ उनकी नाराजगी की बातें भी सामने आ रही हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनके स्थान पर अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा? इस पर कई नामों पर चर्चा चल रही है।


हरिवंश नारायण सिंह की राष्ट्रपति से मुलाकात

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की है, और उनके उपराष्ट्रपति बनने की संभावना सबसे अधिक चर्चा में है। हरिवंश के पास संसद की कार्यवाही का अनुभव है, जो उनके लिए एक मजबूत आधार बनाता है।


अन्य संभावित नाम

संभावित उपराष्ट्रपति के नामों में कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत, केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी, सिक्किम के राज्यपाल ओम माथुर, एल. गणेशन और बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान शामिल हैं। बीजेपी इस बार सामाजिक संतुलन और राजनीतिक संदेश को ध्यान में रखते हुए नया नाम चुन सकती है।


धनखड़ का इस्तीफा: स्वास्थ्य या राजनीतिक असहमति?

यह माना जा रहा है कि जगदीप धनखड़ का इस्तीफा केवल स्वास्थ्य कारणों से नहीं, बल्कि राजनीतिक असहमति और असंतुलन का परिणाम भी हो सकता है। अब सभी की नजर नए चेहरे पर है, जो NDA की रणनीति का अगला संकेत देगा।


धनखड़ की असंतोष की वजहें

सूत्रों के अनुसार, धनखड़ पिछले कुछ महीनों से बीजेपी नेतृत्व से असंतुष्ट थे। हाल ही में उन्होंने राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक बुलाई, लेकिन बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू नहीं पहुंचे, जिससे वह नाराज बताए जा रहे हैं।


सरकार की असहजता

सूत्रों के मुताबिक, उपराष्ट्रपति धनखड़ के रवैये से सरकार असहज थी। न्यायपालिका पर की गई टिप्पणियों को अति-आक्रामक माना गया। विपक्ष के प्रति अचानक नरमी और उनके सुझावों को महत्व देने की प्रवृत्ति से भी असहज स्थिति पैदा हुई थी।