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जनरल अनिल चौहान का बयान: आधुनिक युद्ध में तकनीक और सूचना की भूमिका

जनरल अनिल चौहान ने ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में आधुनिक युद्ध की नई परिभाषा प्रस्तुत की है। उन्होंने बताया कि आज की लड़ाइयाँ केवल हथियारों से नहीं, बल्कि सूचना और तकनीक से भी लड़ी जाती हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि युद्ध अब गैर-रैखिक और बहु-क्षेत्रीय हो गया है, जिसमें साइबर सुरक्षा और डेटा एकीकरण की आवश्यकता है। जानें इस महत्वपूर्ण बयान में और क्या कहा गया है।
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जनरल अनिल चौहान का बयान: आधुनिक युद्ध में तकनीक और सूचना की भूमिका

आधुनिक युद्ध की नई परिभाषा

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने हाल ही में कहा कि ऑपरेशन सिंदूर केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी, बल्कि यह युद्ध की अवधारणा को नए सांचे में ढालने वाला एक महत्वपूर्ण कदम था। उन्होंने इसे आधुनिक युद्ध के स्वरूप में बदलाव का प्रतीक बताया और यह स्पष्ट किया कि आज की लड़ाइयाँ केवल हथियारों से नहीं, बल्कि सूचना, तकनीक और साइबर कौशल से भी लड़ी जाती हैं।


गैर-संपर्क और बहु-क्षेत्रीय युद्ध का उदाहरण

शांगरी-ला डायलॉग, सिंगापुर में बोलते हुए जनरल चौहान ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर एक पारंपरिक हमले से कहीं अधिक था। यह एक "नॉन-कॉन्टैक्ट" (गैर-संपर्क) और "मल्टी-डोमेन" (बहु-क्षेत्रीय) युद्ध था, जिसमें धरती, आकाश, समुद्र, साइबर और सूचना – सभी मोर्चों पर समन्वय के साथ कार्रवाई की गई। उन्होंने बताया कि अब युद्ध के मैदान स्थिर नहीं रहे। बड़े हथियारों और टैंक आधारित युद्धों की जगह अब तेज़, लचीली और भ्रामक रणनीतियाँ ले रही हैं, जहाँ हर डोमेन में वास्तविक समय पर निर्णय लिए जा रहे हैं।


सूचना युद्ध और झूठी खबरें

इस अभियान में सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा था - गलत जानकारी से मुकाबला करना। चौहान के अनुसार, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सशस्त्र बलों के 15% संसाधन और प्रयास सिर्फ झूठी सूचनाओं को नियंत्रित करने में लगे रहे। उन्होंने बताया कि सेना ने एक संतुलित संचार नीति अपनाई, जिसमें सोशल मीडिया पर त्वरित प्रतिक्रिया देने के बजाय तथ्यों और प्रमाणों के आधार पर स्थिति को स्पष्ट किया गया।


प्रारंभिक संचार की रणनीति

उन्होंने एक उदाहरण दिया कि कैसे ऑपरेशन के पहले तीन दिनों में दो महिला अधिकारी मीडिया से संवाद के लिए चुनी गईं, क्योंकि उस समय मुख्य सैन्य नेतृत्व सीधे ऑपरेशन की रणनीति में व्यस्त था। इसके बाद 10 मई को डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) ने मीडिया को संक्षेप में जानकारी दी।


तकनीकी सुरक्षा की सफलता

साइबर युद्ध के संदर्भ में जनरल चौहान ने बताया कि भारत पर कई प्रकार के साइबर हमले किए गए, लेकिन सैन्य ऑपरेशनों पर इनका कोई महत्वपूर्ण असर नहीं पड़ा। उन्होंने कहा कि भारतीय सैन्य प्रणालियाँ "एयर-गैप्ड" हैं यानी वे सीधे इंटरनेट से नहीं जुड़ी होतीं, जिससे वे बाहरी साइबर हमलों से सुरक्षित रहती हैं। हालांकि, कुछ शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक वेबसाइटों को निशाना बनाया गया, परंतु मुख्य कमांड और नियंत्रण प्रणाली अछूती रही।


रीयल-टाइम डेटा की आवश्यकता

जनरल चौहान ने यह भी स्पष्ट किया कि आधुनिक युद्धों में सभी सैन्य डोमेनों के बीच डेटा और कम्युनिकेशन का एकीकरण सबसे बड़ी आवश्यकता है। उनका मानना है कि किसी भी देश के पास अत्याधुनिक हथियार और तकनीक होने से ज्यादा जरूरी है कि वे आपस में एक नेटवर्क के ज़रिए जुड़ी हों, ताकि वास्तविक समय पर निर्णय और संचालन संभव हो सके।


युद्ध का नया चेहरा

सीडीएस चौहान ने कहा कि आज का युद्ध रैखिक (linear) नहीं रहा। अब हम गैर-रैखिक और विकेन्द्रित नेटवर्कों पर आधारित रणनीतियाँ अपना रहे हैं। इनमें बल प्रयोग से ज़्यादा धोखे और भ्रम फैलाकर दुश्मन को मात देना ज्यादा प्रभावी होता है। चौहान ने कहा कि युद्ध अब केवल सीमाओं पर नहीं लड़ा जा रहा, बल्कि वह हर उस स्थान पर लड़ा जा सकता है जहाँ सूचना और तकनीक पहुँच सकती है।


नई तकनीकों के लिए विशेष सैन्य इकाइयां आवश्यक

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि जैसे-जैसे ड्रोन, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर और यूटीएपी (Unmanned Teaming Aerial Platform) जैसी तकनीकें बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे हमें इनके लिए अलग और विशेषज्ञ इकाइयां तैयार करनी होंगी। इसके साथ ही, संयुक्त प्रशिक्षण और सैन्य संरचना में बदलाव की जरूरत पर भी बल दिया गया। उन्होंने कहा कि भारत अब तीनों सेनाओं (थल, नौसेना और वायुसेना) के बीच बेहतर समन्वय की ओर बढ़ रहा है।


संयुक्त प्रशिक्षण और शिक्षा में सुधार

सीडीएस ने बताया कि भारत ने हाल ही में एक संयुक्त स्टाफ कोर्स शुरू किया है, जिसमें तीनों सेनाओं के अधिकारी एक साल तक एक साथ प्रशिक्षण लेते हैं। यह न केवल शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव है, बल्कि एकीकृत सैन्य नेतृत्व की दिशा में भी एक बड़ा कदम है।