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जम्मू-कश्मीर में युवक की हत्या: पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवाल

जम्मू-कश्मीर में एक नवविवाहित युवक मोहम्मद परवेज की हत्या ने पुलिस की कार्रवाई पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पहले उसे ड्रग डीलर बताया गया, लेकिन अब पुलिस ने उसे 'शहीद' घोषित किया है। इस घटना ने न केवल स्थानीय समुदाय में आक्रोश पैदा किया है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि क्या आदिवासी समुदाय की सुरक्षा केवल बयानों तक सीमित है। जानें इस विवादास्पद घटना के पीछे की पूरी कहानी और पुलिस के बदलते बयानों के बारे में।
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जम्मू-कश्मीर में युवक की हत्या: पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवाल

पुलिस कार्रवाई पर उठे सवाल

जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर पुलिस की कार्रवाई विवादों में आ गई है। 21 वर्षीय नवविवाहित जनजातीय युवक मोहम्मद परवेज, जिसे पहले एक ड्रग डीलर के रूप में पेश किया गया था, अब पुलिस द्वारा 'शहीद' घोषित किया गया है। यह घटना केवल एक मौत नहीं है, बल्कि पुलिस के बयानों और जनसंवेदना के बीच एक जटिल कहानी बन गई है।


गुरुवार शाम को मोहम्मद परवेज को गोली तब लगी जब वह अपने रिश्तेदार के साथ दवा लेने जा रहा था। परिवार का कहना है कि जब वे सतवारी थाना क्षेत्र में पहुंचे, तो चार से पांच लोग जो सिविल ड्रेस में थे, ने उन्हें रोका। पहले उन्हें लगा कि ये गौ रक्षक हैं, इसलिए वे भागने लगे। इसी दौरान फायरिंग हुई और परवेज को गोली लगी। प्रारंभ में पुलिस ने कहा कि वे एक ड्रग पेडलर का पीछा कर रहे थे और इस दौरान कोई अज्ञात घायल हो गया।


पुलिस का बदलता बयान

पुलिस का बदला बयान


जब परिवार और गुर्जर-बकरवाल समुदाय ने विरोध किया और युवक की हत्या को 'साजिश' बताया, तो पुलिस को अपनी स्थिति बदलनी पड़ी। विरोध इतना बढ़ गया कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने निष्पक्ष जांच की मांग की। जनता के दबाव में पुलिस ने अपने पहले के बयान को पलटते हुए कहा कि मोहम्मद परवेज 'शहीद' था। पुलिस अधीक्षक अजय शर्मा ने कहा, "हम समाज को जोड़ना चाहते हैं, तोड़ना नहीं। हमने SIT का गठन किया है और दो पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है।"


अभी भी अनुत्तरित प्रश्न

सवाल बाकी हैं, जवाब अधूरे


हालांकि पुलिस ने कार्रवाई की घोषणा की है, लेकिन कई महत्वपूर्ण सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। सिविल ड्रेस में मौजूद लोगों ने गोली क्यों चलाई? अगर परवेज संदिग्ध नहीं था, तो उसे पहले ड्रग डीलर क्यों बताया गया? अब जब पुलिस उसे शहीद मान रही है, तो क्या यह एक फर्जी मुठभेड़ थी? इस घटना ने फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या जम्मू-कश्मीर में आदिवासी समुदाय अब भी हाशिए पर है और उनकी सुरक्षा केवल बयानों तक सीमित है।