जहरीले कफ सिरप कांड: स्वास्थ्य प्रणाली की खामियों का खुलासा
जहरीला कफ सिरप कांड की गंभीरता
लखनऊ। यह स्पष्ट है कि "जहरीला कफ सिरप कांड" लापरवाही, भ्रष्टाचार और माफिया के संबंधों के बिना संभव नहीं था। इस मामले में यह सवाल उठता है कि कैसे इस नकली सिरप को मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और विदेशों, जैसे बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका में वितरित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप सैकड़ों बच्चों की जानें गईं। यह जानना आवश्यक है कि क्या यह सब शासन और प्रशासन की मिलीभगत के बिना संभव था। सूत्रों के अनुसार, इस कांड में बनारस के एनआरएचएम घोटाले में जेल गए दवा माफिया के आरोपियों का नाम भी सामने आया है, जिन्होंने इस जहरीले सिरप के वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे पहले, प्रवर्तन निदेशालय ने 89.84 लाख रुपये की संपत्ति जब्त की थी। यदि ईडी इस मामले की गहराई से जांच करे, तो सच सामने आ जाएगा।
स्वास्थ्य प्रणाली की कमजोरियाँ
यह "जहरीला कफ सिरप कांड" भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली की कमजोरियों को उजागर करता है, जैसे कि नकली दवाओं का बाजार और नियामक लापरवाही। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल नकली दवाओं के कारण हजारों मौतें होती हैं। माता-पिता को दवा खरीदते समय सतर्क रहना चाहिए, दवा का लाइसेंस जांचना चाहिए और डॉक्टर से प्रमाणित ब्रांड के बारे में पूछना चाहिए।
उत्तर प्रदेश में नशीले कफ सिरप की तस्करी
कोडीन युक्त कफ सिरप की अवैध तस्करी का 2000 करोड़ रुपये का रैकेट पकड़ा गया है, जो पूर्वांचल से बांग्लादेश तक फैला हुआ था। सिरप को कागजों पर बेचा जाता था, लेकिन वास्तव में इसे नशीले पदार्थ के रूप में उपयोग किया जाता था। बच्चों को खांसी की दवा के रूप में दिए गए कोल्ड्रिफ कफ सिरप में जहरीला रसायन डायएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) पाया गया, जो किडनी फेलियर का कारण बनता है। तमिलनाडु की श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स कंपनी द्वारा निर्मित इस सिरप के एक बैच में DEG की मात्रा 46.2% थी, जबकि सुरक्षित सीमा केवल 0.1% है।
सख्त नियमों की आवश्यकता
संपादक मुनेंद्र शर्मा का बयान
देश में जहरीली दवाओं के खिलाफ चिंता फिर से बढ़ गई है। यह कांड न केवल स्वास्थ्य सुरक्षा की गंभीर अनदेखी को उजागर करता है, बल्कि दवा निर्माण और वितरण प्रणाली में मौजूद खामियों को भी सामने लाता है। अब सवाल यह है कि क्या यह त्रासदी केवल निर्माता की लापरवाही का परिणाम है या नियामक और सरकारी संस्थाओं की जांच में भी चूक हुई है। संपादक मुनेंद्र शर्मा का कहना है कि इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए सख्त नियम, नियमित जांच और सार्वजनिक जागरूकता की आवश्यकता है। इस घटना ने लोगों में दवा और स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर भय और गहरे सवाल पैदा किए हैं। उन्होंने कहा कि अब देशभर में इस कांड की जांच और दोषियों की पहचान की मांग जोर पकड़ रही है।
