जातीय जनगणना का प्रभाव: बिहार चुनाव में नीतीश कुमार की रणनीति

जातीय जनगणना का राजनीतिक महत्व
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जातीय जनगणना के महत्व को भली-भांति समझते हैं और इसे राजनीतिक लाभ के लिए कैसे उपयोग करना है, इस पर उनकी गहरी समझ है। यही कारण है कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने विशेष वर्गों की बात की, तो नीतीश कुमार ने इसके लिए आभार व्यक्त किया। पीएम मोदी द्वारा उल्लेखित पिछड़े और दलित वर्ग महागठबंधन का एक मजबूत वोटबैंक है, और जातीय जनगणना के माध्यम से इस वोटबैंक में सेंध लगाने की योजना बनाई जा रही है। 2023 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में हुए जाति सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार की जनसंख्या में 63.1% ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग शामिल हैं, जिसमें EBC 36% और यादव 14.3% हैं।
बिहार में जाति का मुद्दा
बिहार में चुनावों के दौरान मुद्दे अक्सर गौण हो जाते हैं और जाति प्रमुख बन जाती है। नीतीश सरकार के एक निर्णय ने इसे फिर से साबित कर दिया है। चुनाव से पहले नीतीश ने सवर्ण आयोग का गठन किया, जो उच्च जातियों के विकास के लिए कार्य करेगा। हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि बिहार में पहले भी सवर्ण आयोग था, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी भूमिका कम हो गई थी। अब चुनावी वर्ष में हर पार्टी जातीय फैक्टर को ध्यान में रखकर अपने मुद्दे तय कर रही है।
राहुल गांधी का जातीय जनगणना पर जोर
लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने पिछले दो वर्षों से जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया है। उन्होंने संसद में इस मांग को जोरदार तरीके से प्रस्तुत किया, जिसमें उन्हें समाजवादी पार्टी, आरजेडी, बीजेडी, बीएसपी और एनसी जैसे दलों का समर्थन मिला। 30 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना कराने का ऐलान किया, जिसे राजनीतिक विश्लेषकों ने एक रणनीतिक कदम माना।
राहुल गांधी की दलित छात्रों से मुलाकात
15 मई को राहुल गांधी दरभंगा दौरे पर गए थे, जहां उन्होंने सामाजिक न्याय और दलितों को हिस्सेदारी देने की बात की। हालांकि, पुलिस ने उन्हें दलित छात्रों से मिलने की अनुमति नहीं दी। बावजूद इसके, राहुल ने छात्रों से संवाद किया और जातीय जनगणना की आवश्यकता पर जोर दिया।
विपक्ष की रणनीति
#WATCH पटना (बिहार): जातीय जनगणना को राष्ट्रीय जनगणना का हिस्सा बनाने की घोषणा पर RJD नेता तेजस्वी यादव ने कहा, "ये हमारी 30 वर्ष पुरानी मांग है और हमारे पूर्वजों की जीत है..." https://t.co/ShQSP4Vylu
— News Media (@NewsMedia) April 30, 2025
तेजस्वी यादव और कांग्रेस ने जातीय जनगणना को सामाजिक न्याय और आरक्षण के विस्तार के लिए एक प्रमुख मुद्दा बनाया है।
नीतीश कुमार का निर्णय
जातीय जनगणना का मुद्दा बिहार चुनाव से पहले इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सामाजिक न्याय और जातिगत वोटबैंक की राजनीति से जुड़ा है। नीतीश कुमार का जाति सर्वेक्षण और केंद्र का हालिया निर्णय इस मुद्दे को और गरम कर रहा है। यह बीजेपी-जदयू गठबंधन के लिए एक रणनीतिक कदम है, जिसका उद्देश्य विपक्ष के सामाजिक न्याय के एजेंडे को कमजोर करना है।
बिहार का जातीय समीकरण
बिहार में जाति आधारित वोटबैंक जैसे यादव-मुस्लिम, कुर्मी-कोइरी और महादलित समुदाय चुनावी परिणामों को प्रभावित करते हैं। जातीय समीकरण में ओबीसी की हिस्सेदारी सबसे अधिक है, और राजनीतिक दल इसी वर्ग को साधकर सत्ता में आते हैं।
जातीय जनगणना का महत्व
जातीय जनगणना पर उठाए गए कदम का उद्देश्य यह समझना है कि जातीय जनगणना क्यों आवश्यक है। इसके माध्यम से जातियों की संख्या, हिस्सेदारी और सामाजिक स्थिति का पता चलेगा।
जातीय जनगणना की संभावित तिथि
मोदी सरकार की मंजूरी के बाद, जातीय जनगणना 2026 में होने की संभावना है। इसकी प्रक्रिया में एक वर्ष लग सकता है, और इसके आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में उपलब्ध होंगे।