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जितिया व्रत: बच्चों की लंबी उम्र के लिए पूजा सामग्री और विधि

जितिया व्रत, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है। विवाहित महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए इस निर्जला व्रत का पालन करती हैं। इस लेख में जानें जितिया व्रत की पूजा सामग्री और विधि, जो इस पर्व को सही तरीके से मनाने में मदद करेगी।
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जितिया व्रत: बच्चों की लंबी उम्र के लिए पूजा सामग्री और विधि

जितिया व्रत का महत्व

पटना | हिंदू धर्म में जितिया व्रत, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, का विशेष महत्व है। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। विवाहित महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए इस निर्जला व्रत का पालन करती हैं।


जितिया व्रत की पूजा सामग्री

इस व्रत के दौरान न तो भोजन किया जाता है और न ही पानी पिया जाता है। जितिया व्रत आश्विन कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि से शुरू होता है, जिसमें नहाय-खाय का आयोजन होता है, और नवमी तिथि को पारण के साथ समाप्त होता है। पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्रियों की आवश्यकता होती है, जैसे कुश (जीमूतवाहन की मूर्ति बनाने के लिए), गाय का गोबर (चील और सियारिन की आकृति के लिए), अक्षत (चावल), पेड़ा, दूर्वा की माला, श्रृंगार का सामान, सिंदूर, फूल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, मिठाई, फल, गांठ का धागा, धूप-दीप, बांस के पत्ते और सरसों का तेल। ये सभी सामग्री पूजा को विधिपूर्वक संपन्न करने के लिए आवश्यक हैं।


जितिया व्रत की पूजा विधि

जितिया व्रत के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। पूरे दिन निर्जला व्रत का पालन करें। शुभ मुहूर्त में कुश से बनी भगवान जीमूतवाहन की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद धूप, दीप, फल और फूल भगवान को अर्पित करें। गाय के गोबर से बनी चील और सियारिन की मूर्तियों पर लाल सिंदूर लगाएं। इसके बाद जितिया व्रत की कथा सुनें और भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें। अगले दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर उगते सूर्य को अर्घ्य दें और व्रत का पारण करें।