जीएसटी 2.0: भारतीय कारीगरों के लिए नई उम्मीद
जीएसटी सुधारों का प्रभाव
नई दिल्ली - अगली पीढ़ी के जीएसटी सुधार भारतीय कारीगरों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर साबित हो रहे हैं। इससे उनके उत्पादों की बिक्री में वृद्धि हुई है और उनकी आय में भी सुधार आया है, जिससे वे फैक्ट्री में निर्मित सामानों के साथ प्रतिस्पर्धा कर पा रहे हैं। जीएसटी 2.0 के तहत कई हस्तशिल्प उत्पादों, जैसे लकड़ी के नक्काशीदार सामान, टेराकोटा जूट हैंडबैग, कपड़े की वस्तुएं और चमड़े के उत्पादों पर कर में कमी आई है।
असम का मूगा रेशम उद्योग
असम का मूगा रेशम उद्योग, जो मुख्य रूप से सुआलकुची (कामरूप), लखीमपुर, धेमाजी और जोरहाट जिलों में स्थित है, महिला बुनकरों की एक समृद्ध विरासत को दर्शाता है। हैंडलूम और हस्तशिल्प पर 5 प्रतिशत जीएसटी की कम दर से बुनकरों को राहत मिलेगी, जिससे वे प्रतिस्पर्धी बाजारों में अपने उत्पादों को बेहतर कीमत पर बेच सकेंगे। इससे निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा। असम के हैंडलूम क्षेत्र में 12.83 लाख से अधिक बुनकर और लगभग 12.46 लाख करघे हैं, जिससे इसका प्रभाव व्यापक होगा।
अन्य राज्यों पर प्रभाव
हैंडलूम और क्राफ्ट पर जीएसटी में कमी से असम के जापी, अशारिकंडी टेराकोटा, मिशिंग हैंडलूम, पानी मेटेका और बिहू ढोल जैसे उद्योगों को भी लाभ होगा। पश्चिम बंगाल, जो पारंपरिक क्राफ्ट और हैंडलूम के लिए प्रसिद्ध है, को भी 12 प्रतिशत से 5 प्रतिशत जीएसटी में कमी से सीधा लाभ होगा। हिमाचल प्रदेश के हैंडलूम उत्पादों, विशेषकर शॉल और ऊनी वस्त्रों को भी इस सुधार से बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। कुल्लू घाटी में, 3,000 से अधिक बुनकर जीआई-टैग वाले कुल्लू शॉल का निर्माण करते हैं।
चंबा रुमाल और चमड़े के उत्पाद
चंबा रुमाल, जो एक जीआई-टैग वाला हस्त-कढ़ाई वाला कपड़ा है, मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की महिला कारीगरों द्वारा बनाया जाता है। इन रूमालों पर जीएसटी घटाकर 5 प्रतिशत करने से उनकी मांग में वृद्धि होने की संभावना है। चंबा के पारंपरिक चमड़े के चप्पल भी जीआई-टैग्ड उत्पाद हैं, जिनका उत्पादन कई छोटी कुटीर शिल्प इकाइयों द्वारा किया जाता है। कम जीएसटी से इनकी कीमतें मशीन से बने जूतों के मुकाबले अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाएंगी, जिससे स्वदेशी चप्पलों की बिक्री को बढ़ावा मिलेगा और कारीगरों को अपने लाभ में सुधार करने में मदद मिलेगी।
