जीएसटी में बदलाव: नई दरों का प्रभाव और आम जनता पर असर

जीएसटी में संभावित बदलाव
यदि 12 प्रतिशत वाले उत्पादों को 18 प्रतिशत में स्थानांतरित किया गया, तो इससे और अधिक नुकसान होगा। 28 प्रतिशत की दर विलासिता की वस्तुओं पर लागू है, जिसमें कमी से समृद्ध वर्ग को लाभ होगा। 12 प्रतिशत वाले उत्पाद आम जनता से जुड़े हुए हैं।
स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए 103 मिनट के भाषण में एक महत्वपूर्ण घोषणा की गई कि अगली दिवाली से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का नया स्वरूप सामने आएगा। इसके बाद सरकारी अधिकारियों के हवाले से मीडिया में यह जानकारी आई है कि इस कर प्रणाली में चार दरों के बजाय केवल दो दरें होंगी। संभवतः 12 प्रतिशत और 28 प्रतिशत की दरें समाप्त कर दी जाएंगी। इन श्रेणियों में आने वाले उत्पादों को पांच और 18 प्रतिशत की दरों में समाहित किया जाएगा। आदर्श स्थिति तो यह होगी कि, जैसा जीएसटी लागू होने से पहले अनुमान लगाया गया था, केवल एक ही दर हो।
हालांकि, दो दरों का होना भी मौजूदा स्थिति की तुलना में एक सुधार माना जाएगा। इससे आर्थिक गतिविधियों को गति देने में कितनी मदद मिलेगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार करों को न्यूनतम रखने का दृष्टिकोण अपनाती है या अधिकतम। यदि 12 प्रतिशत वाले कुछ उत्पादों को 18 प्रतिशत में स्थानांतरित किया गया, तो इससे और नुकसान होगा। 28 प्रतिशत की दर विलासिता की वस्तुओं पर है, जिसके घटने से समृद्ध वर्ग को लाभ होगा। जबकि 12 प्रतिशत वाले उत्पाद आम जनता से जुड़े हुए हैं। यदि इन्हें पांच प्रतिशत पर लाया जाता है, तो निश्चित रूप से लोगों की जेब में कुछ पैसे बचेंगे। हालांकि, यह भी इतना नहीं होगा कि अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने के लिए मांग में पर्याप्त वृद्धि हो सके। इसका कारण हाल के वर्षों में आम परिवारों की बचत में कमी और उन पर बढ़ते कर्ज का बोझ है।
इसके अलावा, विभिन्न सेवाओं की महंगाई का अलग से दबाव भी है। वास्तव में, सरकार ने पिछले दशक में आम जनता की जेब से काफी धन निकाला है, और अब थोड़ी राहत भी अपर्याप्त है। यदि सरकार पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क को समाप्त करे और दीर्घकालिक कल्याणकारी योजनाओं में निवेश बढ़ाए, तो स्थिति में सुधार हो सकता है। लेकिन इस दिशा में कोई संकेत नहीं दिख रहा है। इसके साथ ही, व्यापारियों को टैक्स रिटर्न की जटिलताओं से भी मुक्ति नहीं मिलने वाली है। इसलिए, नरेंद्र मोदी की इस घोषणा की जितनी बड़ी सुर्खियां बनी हैं, उनके पीछे की वास्तविकता उनकी तुलना में काफी कमजोर है।