झारखंड के दिग्गज नेता शिबू सोरेन का निधन: राजनीति में एक युग का अंत

शिबू सोरेन का निधन
Shibu Soren Passes Away: झारखंड की राजनीति के प्रमुख हस्तियों में से एक, पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन का सोमवार सुबह निधन हो गया। वे लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे और दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में उनका उपचार चल रहा था। 81 वर्षीय नेता के निधन की सूचना उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दी। उनके निधन के बाद राज्य सरकार ने तीन दिनों का राजकीय शोक घोषित किया है। झारखंड विधानसभा की कार्यवाही भी श्रद्धांजलि के रूप में अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई है।
अंतिम क्षण
अंतिम सांस
शिबू सोरेन को सोमवार सुबह 8:56 बजे दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में मृत घोषित किया गया। वे पिछले एक महीने से लाइफ सपोर्ट पर थे और डेढ़ महीने पहले उन्हें स्ट्रोक भी आया था। उनका नियमित इलाज चल रहा था। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गहरे दुख के साथ कहा, 'मैं आज शून्य हो गया हूं। आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सबको छोड़कर चले गए।' 24 जून को उन्होंने बताया था कि उनके पिता की तबीयत बिगड़ने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
राजकीय शोक की घोषणा
झारखंड में तीन दिन का राजकीय शोक
पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन पर झारखंड सरकार ने तीन दिनों का राजकीय शोक घोषित किया है। विधानसभा अध्यक्ष रवींद्र नाथ महतो ने बताया कि उनके सम्मान में सोमवार को विधानसभा की कार्यवाही को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया है।
राजनीतिक विरासत
झामुमो के संस्थापक
शिबू सोरेन झामुमो के संस्थापक संरक्षक थे और उन्हें 'दिशोम गुरुजी' के नाम से जाना जाता था। उनका राजनीतिक करियर चार दशकों से अधिक लंबा रहा। उन्होंने झारखंड में आदिवासी अधिकारों और चेतना की आवाज उठाई। 1972 में, उन्होंने ए.के. रॉय और बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की थी।
संसद में योगदान
संसद में लंबी पारी
शिबू सोरेन आठ बार लोकसभा सांसद और दो बार राज्यसभा सदस्य रहे। 1980 में उन्होंने पहली बार दुमका से लोकसभा का चुनाव जीता, और यह क्षेत्र वर्षों तक झामुमो का गढ़ बना रहा। हालांकि, 2019 में उन्हें बीजेपी के नलिन सोरेन से हार का सामना करना पड़ा।
संथाल समुदाय से संबंध
संथाल समुदाय से जुड़ाव
रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन संथाल समुदाय से संबंधित थे। उनके जीवन की शुरुआत संघर्षों से हुई और उन्होंने झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।