झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन: आदिवासी समुदाय के लिए एक युग का अंत

शिबू सोरेन का निधन
शिबू सोरेन का निधन: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन का निधन सोमवार (4 अगस्त) को 81 वर्ष की आयु में हुआ। वे लंबे समय से बीमार थे और दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस दुखद समाचार की पुष्टि की।
स्वास्थ्य समस्याएं
शिबू सोरेन किडनी की बीमारी से ग्रसित थे और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से भी जूझ रहे थे। उनके निधन के बाद झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई है। आदिवासी समुदाय में उन्हें 'दिशोम गुरु' या 'गुरुजी' के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं कि उन्हें यह उपाधि क्यों मिली और इसका क्या महत्व है?
दिशोम गुरु का अर्थ
दिशोम गुरु का क्या अर्थ है?
शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति और आदिवासी समुदाय के लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं। 'दिशोम गुरु' एक संथाली शब्द है, जिसका अर्थ 'देश या समुदाय का मार्गदर्शक' होता है। यह उपाधि उन लोगों को दी जाती है जो समाज को दिशा देते हैं और उनके हितों की रक्षा करते हैं। शिबू सोरेन को यह उपाधि उनके आदिवासी समुदाय के प्रति समर्पण और नेतृत्व के लिए दी गई थी।
आदिवासी समुदाय के नायक
वे आदिवासी समुदाय के नायक कैसे बने
1972 में, शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आदिवासियों के अधिकारों, भूमि और पहचान की रक्षा करना था। उन्होंने जेएएम का गठन कर आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। झारखंड आंदोलन के एक प्रमुख नेता के रूप में, उन्होंने अलग राज्य की मांग की, जो 2000 में सफल हुई। उनके संघर्ष ने उन्हें आदिवासी समुदाय का नायक बना दिया।
राजनीतिक योगदान
राजनीतिक योगदान और विरासत
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे, आठ बार लोकसभा और तीन बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए। इसके अलावा, उन्होंने केंद्र में कोयला मंत्री के रूप में भी कार्य किया।