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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर और योगदान

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर प्रेरणादायक रहा है। पिता की हत्या के बाद उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। उनकी मेहनत से झारखंड राज्य का गठन हुआ। जानें उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं और उनके योगदान के बारे में।
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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर और योगदान

शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन बेहद रोचक रहा है। उनके पिता की मृत्यु के बाद शिबू ने राजनीति में कदम रखा। रविवार को, 81 वर्ष की आयु में, उन्होंने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। केवल 18 वर्ष की आयु में, उन्होंने संथाल नवयुवक संघ की स्थापना की। 1973 में आदिवासी योद्धा बिरसा मुंडा की जयंती पर, शिबू ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव रखी। इस संगठन ने बिहार के विभाजन के लिए संघर्ष किया और आदिवासियों की भूमि की रक्षा के लिए कई आंदोलन किए। शिबू ने न्याय दिलाने के लिए स्वयं कोर्ट लगाई। अंततः, 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य का गठन हुआ, और वर्तमान में उनकी पार्टी की सरकार है, जिसमें उनके बेटे हेमंत मुख्यमंत्री हैं.


पिता की हत्या ने बदली शिबू की जिंदगी

शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को बिहार के रामगढ़ में हुआ। जब वह स्कूल में थे, तब कुछ साहुकारों ने उनके पिता की हत्या कर दी। इस घटना ने उन्हें संथाल नवयुवक संघ की स्थापना के लिए प्रेरित किया।


आदिवासियों के लिए न्याय की लड़ाई

शिबू ने आदिवासियों की भूमि को एकजुट करने का कार्य शुरू किया। उन्होंने जबरन भूमि की कटाई के खिलाफ आवाज उठाई। आदिवासी जमींदारों और साहुकारों से पीड़ित लोगों के लिए, शिबू ने स्वयं न्याय दिलाने के लिए कोर्ट लगाई। उन्हें त्वरित न्याय दिलाने के लिए जाना जाता था.


झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना

4 फरवरी 1973 को, शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की। उन्होंने कुर्मी महतो नेता बिनोद बिहारी महतो और संथाल नेता शिबू सोरेन के साथ मिलकर इस पार्टी का गठन किया। शुरुआत में, शिबू सोरेन JMM के महासचिव बने। आदिवासी भूमि को वापस पाने के लिए JMM ने कई आंदोलन किए.