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टीकमगढ़ तिल वैरायटी: कम लागत में अधिक लाभ का नया अवसर

टीकमगढ़ तिल वैरायटी ने बुंदेलखंड के किसानों के लिए नई संभावनाएं प्रस्तुत की हैं। GTS-8 और TKG-306 जैसी उन्नत किस्में कम लागत में अधिक मुनाफा देने का वादा करती हैं। जानें इन किस्मों की विशेषताएँ, उत्पादन क्षमता और बुवाई के सही तरीके। यह जानकारी किसानों को अपनी कृषि को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में मदद करेगी।
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टीकमगढ़ तिल वैरायटी: कम लागत में अधिक लाभ का नया अवसर

टीकमगढ़ तिल वैरायटी: किसानों के लिए नई संभावनाएं

टीकमगढ़ तिल वैरायटी ने बुंदेलखंड के किसानों के लिए नई उम्मीदें पैदा की हैं। खरीफ फसल की बुवाई का कार्य प्रारंभ हो चुका है, और टीकमगढ़ में तिल अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित दो किस्में, GTS-8 और TKG-306, किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा देने का आश्वासन देती हैं।


उत्पादन क्षमता और विशेषताएँ

ये किस्में 86-90 दिनों में पककर प्रति हेक्टेयर 700-900 किलोग्राम उत्पादन करती हैं। नौगांव कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. कमलेश अहिरवार ने इन किस्मों को बुंदेलखंड के लिए उपयुक्त बताया है।


टीकमगढ़ तिल अनुसंधान केंद्र की भूमिका

टीकमगढ़ तिल वैरायटी की कहानी टीकमगढ़ जिले के तिल अनुसंधान केंद्र से शुरू होती है, जो छतरपुर के निकट स्थित है। यहाँ GTS-8 और TKG-306 जैसी उन्नत किस्में विकसित की गई हैं।


उच्च उत्पादन और गुणवत्ता

GTS-8 और TKG-306 किस्में अपने उच्च उत्पादन और गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध हैं। ये दोनों किस्में प्रति हेक्टेयर 700-900 किलोग्राम तिल का उत्पादन करती हैं, जिसमें तेल की मात्रा 52% तक होती है।


बुवाई के लिए सुझाव

किसानों को सलाह दी गई है कि वे टीकमगढ़ तिल वैरायटी की बुवाई के लिए सही तकनीक अपनाएं। डॉ. कमलेश के अनुसार, एक एकड़ में 2 किलोग्राम और एक हेक्टेयर में 4-5 किलोग्राम बीज का उपयोग करना चाहिए।


किसानों के लिए लाभ

टीकमगढ़ तिल वैरायटी ने किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने का सुनहरा अवसर प्रदान किया है। इन उन्नत किस्मों को अपनाकर बुंदेलखंड के किसान अपनी कृषि को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं।