ट्रंप और एर्दोगन की मुलाकात: भारत के दुश्मनों से नजदीकी बढ़ाने की रणनीति

ट्रंप-एर्दोगन की मुलाकात
ट्रंप-एर्दोगन की मुलाकात: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भारत का एक महत्वपूर्ण सहयोगी माना जाता है। हालाँकि, हाल के समय में उनके बयानों और कार्यों ने उनकी छवि को बदल दिया है। सबसे पहले, ट्रंप ने भारत के खिलाफ टैरिफ युद्ध की शुरुआत की, और हाल ही में उन्होंने पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर को अपने साथ लंच पर बुलाया।
इसके बाद, ट्रंप तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तय्यप एर्दोगन की मेहमाननवाजी करते हुए नजर आए। इससे यह सवाल उठता है कि ट्रंप भारत के दुश्मनों के साथ इतनी नजदीकी क्यों बढ़ा रहे हैं?
एर्दोगन ने पहले इजरायल-ईरान युद्ध से दूरी बनाए रखी थी, लेकिन अब वे खुलकर ट्रंप के प्रयासों की सराहना कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि ट्रंप चाहें, तो रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने में मदद कर सकते हैं। ट्रंप को एर्दोगन का यह बयान इतना पसंद आया कि उन्होंने उनसे मिलने का समय निर्धारित किया। नाटो शिखर सम्मेलन के दौरान, ट्रंप ने एर्दोगन से अलग से बातचीत की।
रूस-यूक्रेन युद्ध में तुर्की की भूमिका
रूस और यूक्रेन जंग में US की मदद करेगा तुर्की
तुर्की के राष्ट्रपति भवन द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, एर्दोगन ने ट्रंप से मुलाकात में वादा किया कि यदि उन्हें रूस-यूक्रेन युद्ध में मदद करने का अवसर मिला, तो वे प्रयास करेंगे। इस मामले में तुर्की और अमेरिका मिलकर काम कर सकते हैं। एर्दोगन ने गाजा में मानवीय संकट को समाप्त करने के लिए भी सहयोग का आश्वासन दिया। वे अमेरिका के साथ रक्षा सौदों और व्यापार को बढ़ावा देने के इच्छुक हैं।
यह ध्यान देने योग्य है कि तुर्की के रूस और यूक्रेन दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। वह गैस, तेल और रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों के साथ सहयोग कर रहा है। काला सागर में तुर्की के सुरक्षा हित सीधे रूस से जुड़े हुए हैं, इसलिए वह मध्यस्थ के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत करना चाहता है।
ट्रंप का तुर्की के प्रति दृष्टिकोण
तुर्की को लेकर ट्रंप का प्लान
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का तुर्की को महत्व देना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। ट्रंप एक बार फिर तुर्की को एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देख रहे हैं। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब रूस-यूक्रेन युद्ध, ईरान-इजराइल संघर्ष और नाटो की एकता पर सवाल उठ रहे हैं।
ट्रंप तुर्की के माध्यम से मध्य पूर्व में अमेरिकी प्रभाव को बनाए रखना चाहते हैं, बिना सीधे सैन्य हस्तक्षेप के। एर्दोगन भी रूस और नाटो के बीच संतुलन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यह ट्रंप की रणनीति के अनुरूप है। दोनों नेताओं के बीच व्यक्तिगत स्तर पर भी मजबूत संबंध हैं, जिसका ट्रंप फिर से लाभ उठाना चाहते हैं।