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ट्रैक्टर को निवास प्रमाण पत्र: सरकारी प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल

हाल ही में मुंगेर से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसमें एक ट्रैक्टर को निवास प्रमाण पत्र जारी किया गया है। इस घटना ने सरकारी प्रणाली की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह केवल तकनीकी गलती है या फिर एक संगठित फर्जीवाड़ा? जानें इस मामले की पूरी कहानी और इसके पीछे की सच्चाई।
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सरकारी दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा

जब ट्रैक्टर को भी निवास प्रमाण पत्र मिलने लगे हैं, तो यह केवल तकनीकी गलती का मामला नहीं रह जाता, बल्कि यह पूरे सरकारी तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है। मुंगेर से आई एक नई घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि फर्जीवाड़ा अब एक संगठित प्रणाली बन चुका है, जिसमें ट्रैक्टर से लेकर कुत्ते तक सभी को 'नागरिक' के रूप में मान्यता मिल रही है।


8 जुलाई 2025 को जारी एक निवास प्रमाण पत्र ने सबको चौंका दिया। इस दस्तावेज़ में एक व्यक्ति के रूप में सोनालिका सिंह का नाम दर्ज है, जो वास्तव में एक ट्रैक्टर ब्रांड है। पिता का नाम 'बेगूसराय चौधरी', माता का नाम 'बालिया देवी' और पता 'तरकटोरा पुर दियरा, वार्ड-17, डाकघर कुत्तापुर' लिखा गया है। इस प्रमाण पत्र पर अंचलाधिकारी प्रभात कुमार का डिजिटल हस्ताक्षर भी पाया गया। जब इस दस्तावेज़ की पुष्टि RTPS पोर्टल पर की गई, तो सच्चाई सामने आ गई।


यह पहली बार नहीं है जब किसी कुत्ते के नाम पर निवास प्रमाण पत्र जारी हुआ है। अब ट्रैक्टर को भी प्रमाण पत्र मिलने से यह स्पष्ट हो गया है कि सरकारी सेवाएं और पहचान पत्र अब मशीनों की लापरवाही और मानवीय गैर-जवाबदेही का शिकार हो सकते हैं।


इस घटना ने यह सवाल उठाया है कि क्या कोई भी सरकारी योजना, सब्सिडी, या वोटर लिस्ट जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में इस तरह के फर्जी दस्तावेजों का उपयोग नहीं किया जा सकता? यह केवल एक गलती नहीं, बल्कि प्रणाली में कई स्तरों पर सुराखों का संकेत है। जब डिजिटल दस्तावेजों पर उच्च अधिकारियों के हस्ताक्षर बिना किसी मानवीय पुष्टि के लग जाते हैं, तो यह तकनीकी असुरक्षा नहीं, बल्कि खतरनाक शिथिलता बन जाती है।


सरकारी तंत्र की यह स्थिति दर्शाती है कि अब केवल अधिकारियों को दोष देना पर्याप्त नहीं है। यह पूरी प्रणाली डेटा प्रबंधन और डिजिटल प्रक्रियाओं में असफल साबित हो रही है। फर्जी प्रमाण पत्रों की बाढ़ ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि कितने और दस्तावेज़ गलत हाथों में पहुंच चुके हैं, जिनका हमें अब तक पता नहीं चला है।


सरकारें नागरिकों को डिजिटल इंडिया और पारदर्शिता का सपना दिखाती हैं, लेकिन जब ट्रैक्टर को निवासी बना दिया जाता है, तो आम जनता को यही लगता है कि सिस्टम केवल दिखावे की मशीन बनकर रह गया है। ऐसे मामलों के कारण लोग असली दस्तावेजों और प्रमाणों पर भी संदेह करने लगते हैं।