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डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार: हिंदू एकता के प्रेरक और आरएसएस के संस्थापक

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, जो 1889 में नागपुर में जन्मे, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करना था। उनके जीवन में कई महत्वपूर्ण घटनाएं शामिल हैं, जो उनके साहस और देशभक्ति को दर्शाती हैं। जानें कैसे उन्होंने अपने विचारों से लाखों लोगों को प्रेरित किया और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया।
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डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार: हिंदू एकता के प्रेरक और आरएसएस के संस्थापक

डॉ. हेडगेवार का जीवन और योगदान

नई दिल्ली: 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर के एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्मे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और हिंदू संगठन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक के रूप में उनकी पहचान आज भी देशभक्ति और अनुशासन का प्रतीक मानी जाती है। उनकी जिंदगी में कई घटनाएं हैं जो उनके साहस, देशप्रेम और संगठनात्मक कौशल को दर्शाती हैं।


‘डॉक्टरजी’ के नाम से मशहूर केशव बलिराम हेडगेवार का बचपन ही उनके क्रांतिकारी स्वभाव की झलक देता है। 1897 में ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया के राज्यारोहण की 60वीं वर्षगांठ पर स्कूल में मिठाइयां बांटी गईं, तब मात्र आठ वर्ष की आयु में उन्होंने इसे गुलामी का प्रतीक मानकर कूड़े में फेंक दिया। यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उनके विद्रोह का संकेत थी। इसके अलावा, 1908 में एक अंग्रेज इंस्पेक्टर के दौरे के दौरान उन्होंने सहपाठियों के साथ ‘वंदे मातरम्’ का नारा लगाया, जिसके कारण उन्हें स्कूल से निष्कासित कर दिया गया। यह घटना उनके देशभक्ति के जज़्बे को और मजबूत बनाती है।


हेडगेवार ने कोलकाता के मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा की पढ़ाई की, लेकिन उनका उद्देश्य धन कमाना नहीं था। वहां रहते हुए वे अनुशीलन समिति और ‘युगांतर’ जैसे क्रांतिकारी संगठनों से जुड़े। केशब चक्रवर्ती के नाम से उन्होंने काकोरी कांड जैसे अभियानों में भाग लिया। हालांकि, बाद में उन्हें एहसास हुआ कि भारत जैसे विशाल देश में सशस्त्र विद्रोह से स्वतंत्रता प्राप्त करना संभव नहीं है। यह विचार उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ बना।


डॉ. हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन नागपुर में आरएसएस की स्थापना की। उनका उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना और उसमें एकता और राष्ट्रीय चेतना जागृत करना था, ताकि भारत की सांस्कृतिक पहचान को सशक्त किया जा सके। उनका मानना था कि समाज में एकता और देशभक्ति की भावना जगाए बिना स्वतंत्रता का लक्ष्य अधूरा रहेगा। आरएसएस की शाखा पद्धति उनके इस दृष्टिकोण का परिणाम थी। उन्होंने स्वयंसेवकों को संगठित किया, जो आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है।


कांग्रेस से उनका जुड़ाव भी रहा, लेकिन वैचारिक मतभेदों के कारण उन्होंने अपने रास्ते अलग कर लिए। 1920 में नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा, जो उस समय पारित नहीं हुआ। 1930 में गांधीजी के नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग लिया और 9 महीने जेल में बिताए।


21 जून, 1940 को नागपुर में उनका निधन हुआ, लेकिन उनके विचार आज भी लाखों स्वयंसेवकों को प्रेरित करते हैं। अपनी अंतिम चिट्ठी में उन्होंने गुरु गोलवलकर को अपना उत्तराधिकारी चुना था।