डोनाल्ड ट्रंप का विवादास्पद कदम: हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय छात्रों के वीजा पर रोक

ट्रंप का नया निर्णय
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के संबंध में एक अत्यधिक विवादास्पद निर्णय लिया है, जिसे अमेरिका और वैश्विक स्तर पर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। ट्रंप ने एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत हार्वर्ड में नए दाखिला लेने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों के F, M और J वीजा को निलंबित कर दिया गया है। यह कदम विदेशी छात्रों को अमेरिका में आने से रोकने के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण बदलाव माना जा रहा है।
व्हाइट हाउस का बयान
बुधवार को व्हाइट हाउस द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि ट्रंप ने विदेश सचिव को निर्देश दिए हैं कि वे न केवल नए छात्रों को अमेरिका में प्रवेश से रोकें, बल्कि हार्वर्ड में पढ़ रहे मौजूदा विदेशी छात्रों के वीजा को भी रद्द करने पर विचार करें, यदि वे घोषणापत्र के मानदंडों पर खरे नहीं उतरते। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब विश्वविद्यालय में दाखिला प्रक्रिया चल रही है और हजारों अंतरराष्ट्रीय छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा का तर्क
राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला
ट्रंप प्रशासन ने इस निर्णय को 'राष्ट्रीय सुरक्षा' से जोड़ा है। व्हाइट हाउस का कहना है कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने अपने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी है। बयान में यह भी उल्लेख किया गया है कि हार्वर्ड ने केवल तीन छात्रों के डेटा को अधूरा रूप में साझा किया, जिससे अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों में चिंता उत्पन्न हुई है।
हार्वर्ड और ट्रंप के बीच टकराव
हार्वर्ड और ट्रंप के बीच बढ़ता टकराव
ट्रंप की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रति नाराजगी कोई नई बात नहीं है। पिछले महीने, ट्रंप ने आरोप लगाया था कि हार्वर्ड के लगभग 31% विदेशी छात्र अमेरिका के लिए 'गैर-मैत्रीपूर्ण' देशों से आते हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। उन्होंने विश्वविद्यालय से इन छात्रों की सूची भी मांगी थी, जिसे हार्वर्ड ने गोपनीयता का हवाला देते हुए देने से मना कर दिया। इसके बाद ट्रंप ने यूनिवर्सिटी की 2.2 बिलियन डॉलर की संघीय फंडिंग रोक दी थी और साथ में 450 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त सहायता भी।
वैश्विक प्रतिक्रिया
दुनिया भर से उठे विरोध के स्वर
ट्रंप के इस निर्णय की वैश्विक स्तर पर आलोचना हो रही है। शैक्षणिक स्वतंत्रता, छात्रों के अधिकार और अमेरिका की शिक्षा प्रणाली पर इस फैसले का गहरा असर पड़ सकता है। भारत, चीन, नाइजीरिया और अन्य देशों से हार्वर्ड में पढ़ाई करने वाले हजारों छात्रों के लिए यह निर्णय एक बड़ा झटका है। कई मानवाधिकार संगठनों और शिक्षा संस्थानों ने इस कदम को भेदभावपूर्ण और खतरनाक बताया है।
आगे की संभावनाएँ
क्या होगा आगे?
अब सवाल यह उठता है कि क्या यह निर्णय आगामी चुनावों के मद्देनज़र लिया गया राजनीतिक कदम है या वास्तव में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी कोई बड़ी चिंता का हिस्सा? एक बात तय है—यह मामला आने वाले दिनों में कानूनी और राजनीतिक दोनों मोर्चों पर चर्चा का विषय बना रहेगा।