तमिलनाडु में सफाईकर्मियों का विरोध: पुलिस कार्रवाई से बढ़ा आक्रोश

सफाईकर्मियों का शांतिपूर्ण प्रदर्शन
सफाईकर्मियों का विरोध: तमिलनाडु में सफाईकर्मियों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस की कार्रवाई ने राज्य में व्यापक आक्रोश उत्पन्न कर दिया है। जीवनयापन के अधिकारों की मांग कर रहे इन श्रमिकों को अचानक गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें महिलाएं, बुजुर्ग और लंबे समय से दैनिक वेतन पर कार्यरत कर्मचारी शामिल थे। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में कई थके हुए श्रमिकों को जमीन पर गिरते और पुलिसकर्मियों द्वारा खींचते हुए देखा जा सकता है।
DMK की कार्यशैली पर सवाल
इस घटना ने सत्तारूढ़ DMK की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 2021 में चुनावी घोषणा पत्र में पार्टी ने सफाईकर्मियों को स्थायी नौकरी, उचित वेतन और सुरक्षित कार्य वातावरण देने का वादा किया था, लेकिन तीन साल बाद भी ये वादे अधूरे हैं। स्थायी नौकरी देने की प्रक्रिया अदालतों में अटकी हुई है, और नगर निकाय सेवाओं का बड़े पैमाने पर निजीकरण किया गया है, जिससे श्रमिकों की नौकरी असुरक्षित हो गई है। न्यूनतम वेतन के सरकारी आदेश भी प्रभावी रूप से लागू नहीं हो रहे हैं।
सरकार पर आरोप
सरकार पर दोहरे मापदंड का आरोप
विपक्ष के नेता एडप्पादी के. पलानीस्वामी ने सरकार पर दोहरे मापदंड का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, 'जब DMK विपक्ष में थी, तब वह छोटी-छोटी बातों पर भी सड़कों पर उतर आती थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद असली मुद्दों पर चुप है और श्रमिकों पर पुलिस छोड़ रही है।' आलोचकों का कहना है कि 13 दिन चले इस आंदोलन के दौरान सरकार ने न तो संवाद किया और न ही समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया।
मुख्य मांगें
सफाईकर्मियों की मुख्य मांग
पुलिस कार्रवाई के बाद सरकार ने तुरंत मुफ्त नाश्ता, आवास सहायता और बीमा कवर जैसी योजनाओं का ऐलान किया, लेकिन सफाईकर्मियों की मुख्य मांग स्थायी सरकारी नौकरी को नजरअंदाज कर दिया गया। मजदूर संगठनों ने इन योजनाओं को केवल दिखावा बताते हुए खारिज कर दिया। एक यूनियन नेता ने कहा कि मूल समस्या को नजरअंदाज कर योजनाओं का ऐलान करना श्रमिकों का अपमान है।
चेन्नई निगम की सफाई व्यवस्था
चेन्नई निगम की बदहाल सफाई व्यवस्था
यह विवाद चेन्नई निगम की खराब सफाई व्यवस्था को भी उजागर करता है। कभी देश के सबसे साफ शहरों में गिने जाने वाला चेन्नई अब स्वच्छ सर्वेक्षण 2024-25 में 38वें स्थान पर पहुंच गया है। शहर से रोजाना 6,500 टन कचरा निकलता है, लेकिन केवल आधे घरों से ही डोर-टू-डोर कलेक्शन होता है। सार्वजनिक शौचालयों की कार्यक्षमता भी 77 प्रतिशत से घटकर केवल 33 प्रतिशत रह गई है।
सफाई के उपाय
शहर को साफ रखने का एकमात्र उपाय
मेयर प्रिया ने निजीकरण को शहर को साफ रखने का एकमात्र उपाय बताया। वर्तमान में चेन्नई के 15 में से 10 जोन निजी कंपनियों के अधीन हैं, लेकिन इसके परिणाम नकारात्मक रहे हैं। श्रमिकों की नौकरियां गईं, वेतन घटा और सफाई व्यवस्था बिगड़ गई। पहले 23 हजार रुपये पाने वाले सफाईकर्मी अब 15 हजार रुपये पर जीने को मजबूर हैं। कभी भारत का डेट्रॉयट कहे जाने वाला चेन्नई आज कचरे और वादाखिलाफी के बोझ तले दबा हुआ है।