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तालिबान का शिक्षा पर नया हमला: 51 विषयों को हटाने का आदेश

तालिबान ने हाल ही में कक्षा 1 से 12 तक पढ़ाए जाने वाले 51 विषयों को हटाने का आदेश दिया है, जिसमें राष्ट्रीय ध्वज, स्वतंत्रता और मानवाधिकार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं। इस कदम की आलोचना करते हुए मानवाधिकार संगठनों ने इसे शिक्षा पर एकतरफा विचारधारा थोपने का प्रयास बताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अफगान बच्चों की रचनात्मकता और स्वतंत्र सोच पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह निर्णय न केवल शिक्षा बल्कि देश की संस्कृति और पहचान पर भी गहरा असर डालेगा।
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तालिबान का शिक्षा पर नया हमला: 51 विषयों को हटाने का आदेश

अंतरराष्ट्रीय समाचार

International News:  तालिबान के शिक्षा मंत्रालय ने कक्षा 1 से 12 तक पढ़ाए जाने वाले 51 विषयों को हटाने का आदेश दिया। इसमें राष्ट्रीय ध्वज, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, महिला अधिकार, शांति और मानवाधिकार जैसे मुद्दे शामिल हैं। अध्यापकों को नोटिस जारी किया गया, लेकिन सरकार ने कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया। आलोचक कहते हैं कि तालिबान लगातार समाज पर अपनी विचारधारा थोप रहा है। छात्रों को अब वह ज्ञान नहीं मिलेगा जो उन्हें आज़ादी, एकता और अधिकारों के बारे में सिखाता था।


संस्कृति और नागरिकता पर प्रहार

राष्ट्रीय गान, बामियान की बुद्ध प्रतिमाएं, शिक्षक दिवस और मातृ दिवस जैसे विषय भी हटा दिए गए हैं। ये सब बच्चे को अफगान संस्कृति, पहचान और इतिहास से जोड़ते थे। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सिर्फ शिक्षा पर नहीं बल्कि देश की यादों और धरोहर पर भी हमला है। अब छात्र अपनी जड़ों और वैश्विक दृष्टिकोण से कट जाएंगे।


पहले विश्वविद्यालयों को बनाया निशाना

यह पहला मौका नहीं है जब तालिबान ने पढ़ाई पर रोक लगाई हो। इससे पहले विश्वविद्यालयों से 18 विषय हटा दिए गए थे, जिन्हें शरिया कानून के खिलाफ बताया गया। 201 विषयों को जांच के बाद ही पढ़ाने की अनुमति दी गई। अब स्कूलों में भी यही नीति लागू की जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक सोची-समझी रणनीति है ताकि नई पीढ़ी केवल तालिबान की विचारधारा को ही माने।


अप्रैल में भी हटाए थे विषय

इस साल अप्रैल में भी तालिबान ने कला, नागरिक शिक्षा, संस्कृति और देशभक्ति जैसे विषय हटा दिए थे। इनमें लोकतंत्र, संवैधानिक कानून और अफगान संस्कृति से जुड़े अध्याय शामिल थे। अब नए आदेश से बच्चों के लिए और भी विषय बंद कर दिए गए। इससे उनकी रचनात्मकता, स्वतंत्र सोच और अधिकारों की समझ और सीमित हो जाएगी।


मानवाधिकार संगठनों का विरोध

मानवाधिकार संगठन और शिक्षा विशेषज्ञ इस कदम की कड़ी आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि शिक्षा का इस्तेमाल बच्चों पर एकतरफा विचारधारा थोपने के लिए किया जा रहा है। खासकर लड़कियों के लिए यह और भी बड़ा झटका है, जो पहले से ही शिक्षा में भेदभाव झेल रही हैं। आलोचकों का मानना है कि यह कदम अफगानिस्तान को और पिछड़ा बना देगा।


छात्र और समाज पर असर

विशेषज्ञों का कहना है कि अब अफगान बच्चे आलोचनात्मक सोच और नागरिक अधिकारों के बारे में नहीं सीख पाएंगे। वे सवाल पूछने और विविधता की कद्र करने की आदत खो देंगे। इसका असर देश के भविष्य पर पड़ेगा। समाज में लोकतांत्रिक ढांचा कमजोर होगा और रचनात्मकता दब जाएगी। शिक्षक मानते हैं कि यह मौन थोपने की कोशिश है, जिससे बच्चों की स्वतंत्र सोच खत्म हो जाएगी।


तालिबान फैसले से दुनिया चिंतित

तालिबान के इस फैसले पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता जताई जा रही है। शांति, एकता और अधिकारों जैसे विषय हटाने से अफगानिस्तान की नई पीढ़ी लोकतांत्रिक मूल्यों से दूर हो जाएगी। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह सिर्फ किताबों की बात नहीं है बल्कि पूरे समाज को ढालने का तरीका है। कई देश मानते हैं कि तालिबान जानबूझकर शिक्षा को संकीर्ण बना रहा है ताकि अपनी सत्ता कायम रख सके।