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तालिबान ने अफगानिस्तान में महिलाओं की किताबों पर लगाया प्रतिबंध

तालिबान ने अफगानिस्तान में यौन उत्पीड़न, मानवाधिकार और जेंडर स्टडीज से संबंधित 679 किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस निर्णय से महिलाओं की शिक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है। प्रतिबंधित किताबों में 140 महिला लेखिकाओं की रचनाएं शामिल हैं। इसके अलावा, तालिबान ने वाई-फाई सेवाओं पर भी पाबंदी लगाई है। शिक्षा क्षेत्र में इस निर्णय के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि कई प्रोफेसरों को नए पाठ्यक्रम तैयार करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
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तालिबान ने अफगानिस्तान में महिलाओं की किताबों पर लगाया प्रतिबंध

तालिबान का नया आदेश


अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने हाल ही में यौन उत्पीड़न, मानवाधिकार, महिलाओं के समाजशास्त्र और जेंडर स्टडीज से संबंधित किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह आदेश 28 अगस्त 2025 से प्रभावी हुआ है, जिसके तहत 679 किताबें प्रतिबंधित की गई हैं। इनमें से 140 किताबें महिला लेखिकाओं द्वारा लिखी गई थीं। तालिबान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अब विश्वविद्यालयों में महिलाओं द्वारा लिखी गई कोई भी किताब नहीं पढ़ाई जाएगी। इस समिति ने इन किताबों को शरिया और तालिबान की नीतियों के खिलाफ बताया है।


शिक्षा पर पाबंदियों की श्रृंखला

यह निर्णय तालिबान द्वारा पिछले चार वर्षों में लागू किए गए कई प्रतिबंधों का हिस्सा है। हाल ही में, तालिबान ने 10 प्रांतों में वाई-फाई सेवाएं बंद कर दीं, यह कहते हुए कि इससे अनैतिक गतिविधियों को रोका जा सकेगा। पहले से ही, महिलाओं को कक्षा 6 से आगे पढ़ाई करने से रोका गया था, और दाई के पाठ्यक्रम, जो उनके लिए अंतिम सहारा थे, 2024 के अंत तक बंद कर दिए जाएंगे।


ईरानी लेखकों की किताबों पर भी प्रतिबंध

प्रतिबंधित किताबों की सूची में 310 किताबें ईरानी लेखकों या प्रकाशकों की हैं। तालिबान का कहना है कि यह कदम अफगान पाठ्यक्रम पर ईरान के प्रभाव को रोकने के लिए उठाया गया है। हाल के वर्षों में, दोनों देशों के बीच पानी के बंटवारे और शरणार्थियों की वापसी जैसे मुद्दों पर तनाव बढ़ा है।


शिक्षा क्षेत्र पर प्रभाव

एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर का कहना है कि यह प्रतिबंध अकादमिक माहौल को गंभीर नुकसान पहुंचाएगा। ईरानी लेखक और अनुवादक अब तक अफगान शिक्षा को वैश्विक स्तर पर जोड़ने का कार्य करते थे। उनकी किताबें हटाने के बाद, कई प्रोफेसरों को खुद पाठ्यक्रम तैयार करने की आवश्यकता पड़ रही है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे उन मानकों पर खरे उतर पाएंगे या नहीं।