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तालिबान विदेश मंत्री की भारत यात्रा: विवाद और कूटनीतिक सवाल

तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा ने विवादों को जन्म दिया है। इस यात्रा के दौरान उनके द्वारा दिए गए बयानों और भारत की कूटनीति पर सवाल उठ रहे हैं। क्या तालिबान को भारत बुलाने का उद्देश्य अमेरिका को सबक सिखाना था? जानें इस यात्रा के पीछे की कूटनीतिक कहानी और तालिबान के रवैये पर उठते सवाल।
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तालिबान विदेश मंत्री की भारत यात्रा: विवाद और कूटनीतिक सवाल

तालिबान विदेश मंत्री की यात्रा पर उठे सवाल

तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा ने कई विवादों को जन्म दिया है। इस दौरान एक सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया गया कि उन्होंने भारत में खड़े होकर कहा कि बगराम एयरबेस अमेरिका को नहीं देंगे। यह बयान वास्तव में रूस में हुई एक बैठक के दौरान कई देशों के प्रतिनिधियों के सामने दिया गया था, जिसमें भारतीय राजनयिक भी शामिल थे। हालांकि, इसके बाद एक टिप्पणी की गई कि 'मोदी नाम है उसका अमेरिका को कहीं का नहीं छोड़ेगा'। यह राइटविंग प्रोपेगेंडा चैनल द्वारा प्रचारित किया गया कि तालिबान को भारत बुलाने का उद्देश्य अमेरिका को सबक सिखाना है, और इसे भारत की कूटनीति की महानता के रूप में पेश किया जा रहा है!


तालिबान की उपयोगिता और भारत की कूटनीति

हालांकि, यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि तालिबान के विदेश मंत्री को भारत बुलाने पर सवाल उठने की संभावना थी, इसलिए पहले से ही एक नैरेटिव तैयार किया गया कि यह कूटनीतिक उपयोग के लिए किया गया है। अफगानिस्तान ने यह भी कहा है कि वह अपनी जमीन का उपयोग भारत के खिलाफ नहीं होने देगा। लेकिन मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से यह प्रचारित किया गया है कि तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) अफगानिस्तान में सक्रिय है और पाकिस्तान पर हमले कर रहा है। इस संदर्भ में अफगानिस्तान को भारत के लिए उपयुक्त बताया जा रहा है।


तालिबान के साथ सांस्कृतिक मुद्दे

दिल्ली में तालिबान के दूतावास की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी तालिबान की संस्कृति और मान्यताओं का प्रभाव देखा गया। अमीर खान मुत्ताकी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को शामिल नहीं होने दिया। रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्हें नकाब या हिजाब पहनने का सुझाव दिया गया था। भारत सरकार ने इस मामले में सफाई दी कि उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं थी और अफगानिस्तान का दूतावास भारत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। अफगान दूतावास ने भी कहा कि यह अनजाने में हुआ।


कूटनीतिक आधार की कमी

हालांकि, यह सवाल उठता है कि तालिबान के विदेश मंत्री को इतना सम्मान क्यों दिया गया और उनके रवैये को क्यों सहन किया गया। क्या इसके पीछे कोई ठोस कूटनीतिक आधार है? यह सभी सवाल भारत की कूटनीति और तालिबान के साथ संबंधों पर विचार करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।