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तेलंगाना सरकार का मुस्लिम परिवारों के लिए आरक्षण का नया कदम

तेलंगाना सरकार ने लगभग 3 लाख मुस्लिम परिवारों को पिछड़ा वर्ग के तहत आरक्षण देने की योजना को लागू करना शुरू कर दिया है। यह निर्णय मुस्लिम समुदाय के लिए राहत का कारण बन सकता है, जो लंबे समय से आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन का सामना कर रहे हैं। पहले 4% आरक्षण मिलने के बावजूद, कानूनी अड़चनों के कारण लाभ नहीं मिल पाया। अब आरक्षण को 42% तक बढ़ा दिया गया है, जो शिक्षा और सरकारी नौकरियों में लागू होगा। इस योजना से शिया समुदाय की स्थिति में सुधार की उम्मीद है, और सरकार SC-ST जैसी योजनाओं के समान लाभ देने पर विचार कर रही है।
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तेलंगाना में मुस्लिम परिवारों को आरक्षण

तेलंगाना की सरकार ने राज्य के लगभग 3 लाख मुस्लिम परिवारों को पिछड़ा वर्ग (BC) के तहत आरक्षण देने की योजना को लागू करना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार का यह निर्णय उन मुस्लिम समुदायों के लिए राहत का कारण बन सकता है, जो लंबे समय से आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन का सामना कर रहे हैं। पहले इन जातियों को 4% आरक्षण मिलता था, लेकिन कानूनी समस्याओं और धार्मिक विवादों के कारण यह लाभ पूरी तरह से नहीं मिल पाया।
राज्य की मुस्लिम जनसंख्या में लगभग 80% लोग सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर हैं, जैसा कि फरवरी 2025 में जारी SEEPC (सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार और राजनीतिक जाति) सर्वे रिपोर्ट में बताया गया। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि हैदराबाद के पुराने क्षेत्रों में मुस्लिम जनसंख्या में कमी आ सकती है, क्योंकि कई महिलाएं गणना में शामिल नहीं हुईं।
पिछड़ा वर्ग आरक्षण अब 42% तक बढ़ा
तेलंगाना विधानसभा ने मार्च में एक विधेयक पारित किया, जिसके तहत पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण को 27% से बढ़ाकर 42% कर दिया गया है। यह वृद्धि न केवल शिक्षा और सरकारी नौकरियों में लागू होगी, बल्कि स्थानीय निकाय चुनावों में भी प्रभावी होगी। अब यह विधेयक राज्यपाल जिष्णु देव वर्मा द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास अंतिम मंजूरी के लिए भेजा गया है।
शिया समुदाय की स्थिति पर ध्यान
मुस्लिम समुदाय के भीतर विशेष रूप से शिया परिवारों की स्थिति चिंताजनक है। वरिष्ठ नेता और सरकारी सलाहकार मो. अली शब्बीर ने बताया कि लगभग 3 लाख शिया परिवार न केवल आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, बल्कि सरकारी योजनाओं का लाभ भी उन्हें नहीं मिल पा रहा है। सर्वे में यह भी सामने आया है कि 10.08% मुस्लिम आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है।
समाज में जातिगत विविधता का ध्यान
समाज में व्याप्त पेशेवर जातिगत विविधता को ध्यान में रखते हुए, सैयद, मुगल, पठान, अरब, कोज्जा मेमन, आगा खानी और बोहरा जैसे समूहों को केवल धार्मिक पहचान के आधार पर नहीं, बल्कि उनके सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दिया जाएगा।
राजनीतिक विवादों के बीच सरकार का पक्ष
बीजेपी ने इस आरक्षण को धर्म आधारित बताकर आलोचना की है, लेकिन मो. अली शब्बीर ने स्पष्ट किया कि अब तक इस विषय पर ठोस आंकड़ों की कमी थी। उन्होंने कहा कि सर्वे के माध्यम से प्राप्त आंकड़े दर्शाते हैं कि अधिकांश गरीब मुसलमान फल-सब्जी विक्रेता, ड्राइवर या कबाड़ी जैसे छोटे व्यवसायों में लगे हुए हैं, जो उचित सरकारी सहायता के हकदार हैं।
आगे की संभावनाएं: SC-ST जैसी योजनाओं की राह पर
सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि इन मुस्लिम जातियों को SC और ST समुदायों को मिलने वाले समान लाभ दिए जाएं। इसमें रोजगार में आरक्षण, छात्रवृत्तियां, उद्यमिता प्रोत्साहन और राजनीतिक प्रतिनिधित्व शामिल हैं। इससे न केवल सामाजिक समानता बढ़ेगी, बल्कि आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में भी महत्वपूर्ण बदलाव आएगा।