दक्षिण एशिया में बढ़ती सैन्य गतिविधियाँ: क्या बन रहा है नया प्रॉक्सी युद्ध?

US Army in Bangladesh:
US Army in Bangladesh: हाल के दिनों में दक्षिण एशिया के संवेदनशील क्षेत्र में जो सैन्य गतिविधियाँ हुई हैं, उन्होंने नई भू-राजनीतिक चर्चाओं को जन्म दिया है। बांग्लादेश के चटगांव में अमेरिकी सेना के 100 से अधिक सैनिकों की 'गोपनीय' तैनाती ने चर्चा का विषय बना दिया है। वहीं, भारत ने म्यांमार में अपनी थल, वायु और नौसेना के 120 जवानों को भेजकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वह क्षेत्रीय संतुलन को लेकर सजग है।
बंगाल की खाड़ी में रणनीतिक दखल
10 सितंबर को बांग्लादेश के चटगांव में अमेरिकी वायुसेना का C-130J सुपर हर्क्यूलिस विमान उतरा, जिसमें लगभग 120 अमेरिकी सैनिक सवार थे। ये सैनिक ढाका होते हुए चटगांव पहुंचे और वहां एक होटल में बिना औपचारिक पंजीकरण के ठहरे। यह पूरा ऑपरेशन 'पैसिफिक एंजल 25-3' का हिस्सा था, जो अमेरिका, बांग्लादेश और श्रीलंका की वायुसेनाओं के बीच 15 से 18 सितंबर तक चला। इस सैन्य अभ्यास में बांग्लादेशी वायुसेना के C-130J विमान और MI-17 हेलीकॉप्टरों के साथ अमेरिका के दो C-130J विमान शामिल थे। कुल 242 सैनिकों ने इसमें भाग लिया, जिनमें 150 बांग्लादेशी और 92 अमेरिकी थे। हालांकि, इस ऑपरेशन की गोपनीयता और अमेरिकी सैनिकों की अप्रत्याशित उपस्थिति ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
स्थानीय असहजता और सुरक्षा सवाल
बांग्लादेशी सैन्य सूत्रों के अनुसार, स्थानीय प्रशासन अमेरिकी सैनिकों के आगमन से अनजान था, जिससे उन्हें असहजता महसूस हुई। चटगांव भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और म्यांमार की अस्थिर सीमा के निकट है। इससे पहले, अमेरिका और बांग्लादेश ने द्विपक्षीय सैन्य संबंधों को मजबूत करने की बात की थी। विश्लेषकों का मानना है कि यह केवल एक अभ्यास नहीं, बल्कि अमेरिका की बड़ी रणनीति का हिस्सा है, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए। अमेरिका पहले से ही 'टाइगर लाइटनिंग 2025' और 'पैसिफिक एंजल' जैसे अभ्यासों के जरिए बांग्लादेश को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहा है।
म्यांमार में त्रि-सेना की मौजूदगी
इन घटनाओं के बीच, भारत ने भी बिना किसी शोर-शराबे के अपनी रणनीति को आगे बढ़ाया। 16 सितंबर को भारतीय वायुसेना का IL-76 विमान म्यांमार की राजधानी नायपीडॉ पहुंचा, जिसमें थलसेना, वायुसेना और नौसेना के कुल 120 जवान शामिल थे। यह 'इंडिया-म्यांमार रेसिप्रोकल मिलिट्री कल्चरल एक्सचेंज' का तीसरा संस्करण था, जो 16 से 20 सितंबर तक आयोजित हुआ। इस अभ्यास का उद्देश्य केवल सैन्य सहयोग नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और रणनीतिक रिश्तों को मजबूत करना भी है। इसके तहत म्यांमार के जवानों को बोधगया लाया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत म्यांमार की सैन्य जंटा के साथ संबंध मजबूत बनाए रखना चाहता है।
चीन, रोहिंग्या संकट और 'नए ग्रेट गेम' की आहट
इस पूरे घटनाक्रम का एक बड़ा संदर्भ म्यांमार में चल रहा रोहिंग्या संकट है। 2017 के नरसंहार के बाद लगभग 10 लाख रोहिंग्या बांग्लादेश में शरण लिए हुए हैं। हाल ही में और 1.5 लाख नए शरणार्थी पहुंचे हैं। बांग्लादेश ने राखाइन में 'ह्यूमैनिटेरियन कॉरिडोर' की मांग की है, जिसे कुछ विश्लेषकों ने अमेरिकी लॉजिस्टिक सपोर्ट की आड़ बताया है।
चीन म्यांमार के विद्रोहियों और जंटा दोनों के साथ अपने संबंध बनाए हुए है, जबकि अमेरिका बांग्लादेश के जरिए अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। भारत के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उसकी 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी', पूर्वोत्तर की सुरक्षा और कलादान जैसे परियोजनाएं म्यांमार की स्थिरता पर निर्भर हैं।
'प्रॉक्सी वॉर' की जमीन तैयार?
सोशल मीडिया और विशेषज्ञों की चर्चा में यह सवाल उठ रहा है कि क्या दक्षिण एशिया में एक नया प्रॉक्सी युद्ध जन्म ले रहा है? अमेरिका बांग्लादेश के माध्यम से विद्रोही गुटों को समर्थन देकर म्यांमार की जंटा पर दबाव बनाना चाहता है, जबकि भारत अपनी भू-राजनीतिक स्थिति को सुरक्षित रखने के लिए म्यांमार सरकार के साथ खड़ा है। भारतीय रणनीतिक विश्लेषक इसे 'नए ग्रेट गेम' की शुरुआत मानते हैं, जहां चीन, अमेरिका और भारत तीनों ही इस क्षेत्र में अपने-अपने मोहरे बिछा रहे हैं।