दक्षेस की निष्क्रियता: पाकिस्तान और चीन का नया क्षेत्रीय संगठन
दक्षेस, जो पहले क्षेत्रीय एकता का प्रतीक था, अब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के कारण निष्क्रिय हो गया है। इस स्थिति में, पाकिस्तान और चीन एक नए क्षेत्रीय संगठन की स्थापना की दिशा में काम कर रहे हैं, जो दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के देशों को एक साथ लाने का प्रयास कर रहा है। भारत इस नए मंच को एक रणनीतिक चुनौती के रूप में देख सकता है। जानें इस नए संगठन के संभावित प्रभाव और क्षेत्रीय राजनीति में इसके महत्व के बारे में।
Jul 1, 2025, 11:33 IST
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दक्षेस का इतिहास और वर्तमान स्थिति
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस- SAARC) को पहले क्षेत्रीय एकता और आर्थिक सहयोग का प्रतीक माना जाता था। लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के कारण, यह संगठन पिछले कुछ वर्षों से निष्क्रिय हो गया है। इस स्थिति में, पाकिस्तान और चीन एक नए क्षेत्रीय समूह की स्थापना की दिशा में काम कर रहे हैं, जो दक्षिण एशिया और उसके पड़ोसी क्षेत्रों में भू-राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है। यह संगठन 1985 में स्थापित हुआ था और इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान जैसे आठ सदस्य देश शामिल हैं।
दक्षेस की निष्क्रियता और भारत की प्रतिक्रिया
2016 में उरी हमले के बाद, भारत ने इस्लामाबाद में प्रस्तावित दक्षेस शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया था, जिसके बाद से कोई भी शिखर सम्मेलन आयोजित नहीं हुआ। काठमांडू में 2014 में हुए शिखर सम्मेलन के बाद से दक्षेस का कोई द्विवार्षिक शिखर सम्मेलन नहीं हुआ है। दक्षेस की नीतियों में आम सहमति की आवश्यकता होती है, लेकिन कई मुद्दों पर सदस्य देश एकमत नहीं हो पाते, जिससे निर्णय प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इस बीच, भारत ने BIMSTEC (बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल) को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है, जिसमें पाकिस्तान शामिल नहीं है।
चीन और पाकिस्तान का नया क्षेत्रीय संगठन
चीन दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए "चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC)" जैसी परियोजनाओं के माध्यम से पहले से ही सक्रिय है। अब वह दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के कुछ देशों को मिलाकर एक वैकल्पिक क्षेत्रीय संगठन की संभावना पर काम कर रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान चाहता है कि ऐसा मंच बने जहां भारत का प्रभाव सीमित हो और उसे चीन जैसे शक्तिशाली साझेदार का समर्थन मिले। यह नया संगठन व्यापार, संपर्क और रणनीतिक सहयोग पर केंद्रित होगा, लेकिन इसमें भारत की अनुपस्थिति या सीमित भूमिका होगी।
भारत की प्रतिक्रिया और क्षेत्रीय संतुलन
भारत इस नए मंच को एक रणनीतिक चुनौती के रूप में देख सकता है, खासकर यदि दक्षिण एशियाई देशों का रुझान चीन की ओर बढ़ता है। भारत ने BIMSTEC, क्वाड (QUAD) और इंडो-पैसिफिक फ्रेमवर्क जैसे मंचों के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग को नया आयाम देने की कोशिश की है। हालांकि, इस नई पहल को संतुलित करने के लिए भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को और मजबूत करने की आवश्यकता होगी।
बांग्लादेश की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान के ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ के अनुसार, इस्लामाबाद और बीजिंग के बीच बातचीत अब आगे के चरण में है, क्योंकि दोनों पक्ष क्षेत्रीय एकीकरण और संपर्क के लिए एक नए संगठन की आवश्यकता को महसूस कर रहे हैं। हालांकि, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने ढाका, बीजिंग और इस्लामाबाद के बीच किसी भी उभरते गठबंधन के विचार को खारिज कर दिया है। विदेश मामलों के सलाहकार एम तौहीद हुसैन ने कहा, ‘‘हम कोई गठबंधन नहीं बना रहे हैं।’’
भविष्य की संभावनाएँ
हालांकि, यह स्पष्ट है कि दक्षेस की निष्क्रियता से उत्पन्न भू-राजनीतिक शून्य को भरने के लिए चीन और पाकिस्तान जो प्रयास कर रहे हैं, वह क्षेत्रीय प्रभाव और रणनीतिक संतुलन बनाने का एक प्रयास है। आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह नया समूह दक्षेस का विकल्प बन पाएगा या नहीं, लेकिन यह निश्चित है कि दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय राजनीति एक नए मोड़ पर पहुंच चुकी है।