दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन: क्या कहती है उनकी नई किताब?

उत्तराधिकारी के चयन पर बढ़ती चर्चा
बौद्ध धर्म के प्रमुख दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। हालांकि, इस विषय पर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन दलाई लामा ने अपनी हालिया पुस्तक 'Voice for the Voiceless' में संकेत दिए हैं कि वे 90 वर्ष की आयु में उत्तराधिकारी के बारे में जानकारी साझा करेंगे।
भू-राजनीतिक प्रभाव
यह चयन प्रक्रिया न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत, अमेरिका और चीन जैसे देशों के बीच भू-राजनीतिक समीकरणों पर भी असर डाल सकती है। दलाई लामा का उत्तराधिकारी कौन होगा, उसका जन्म स्थान क्या होगा, और उसे कैसे पहचाना जाएगा, ये सभी सवाल वैश्विक स्तर पर चर्चा का विषय बन सकते हैं।
14वें दलाई लामा का चयन कैसे हुआ?
तिब्बती परंपरा के अनुसार, जब कोई वरिष्ठ बौद्ध भिक्षु मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसकी आत्मा पुनर्जन्म लेती है। मौजूदा 14वें दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई 1935 को उत्तरी तिब्बत के एक किसान परिवार में हुआ था। उनका नाम ल्हामो थोंधुप रखा गया। 13वें दलाई लामा के निधन के बाद, तिब्बती सरकार ने पुनर्जन्म की खोज के लिए एक दल को भेजा। जब दल ल्हामो थोंधुप के पास पहुंचा, तो उन्होंने 13वें दलाई लामा की वस्तुओं को पहचान लिया। इसके बाद, 1940 में उन्हें आधिकारिक रूप से तिब्बती जनता का आध्यात्मिक गुरु घोषित किया गया।
अगले दलाई लामा का चयन
दलाई लामा ने अपनी पुस्तक 'Voice for the Voiceless' में लिखा है कि उनका अगला जन्म चीन के बाहर होगा। तिब्बती निर्वासित सरकार ने भी इस बात के संकेत दिए हैं और उत्तराधिकारी चयन के लिए एक प्रक्रिया तैयार की है। इस प्रक्रिया की जिम्मेदारी गादेन फोदरांग फाउंडेशन को सौंपी गई है, जो 2015 में स्थापित हुई थी।
चीन का हस्तक्षेप
चीन लंबे समय से यह दावा करता आया है कि दलाई लामा के चयन की अंतिम स्वीकृति उसके पास होनी चाहिए। 1793 में किंग वंश के दौरान शुरू की गई परंपरा के अनुसार, 'सोने के कलश' से संभावित नामों का चयन किया जाता है। हालांकि, तिब्बती समुदाय और अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक इसे चीन की एक साजिश मानते हैं, जिसके जरिए वह तिब्बती बौद्ध समाज पर नियंत्रण स्थापित करना चाहता है।
भारत और अमेरिका की भूमिका
भारत में दलाई लामा को आध्यात्मिक सम्मान प्राप्त है और उनकी उपस्थिति को चीन के खिलाफ एक कूटनीतिक बढ़त माना जाता है। अरुणाचल प्रदेश और तिब्बती शरणार्थियों से जुड़े मुद्दों पर उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। वहीं, अमेरिका ने बार-बार यह कहा है कि वह तिब्बती लोगों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा करेगा और दलाई लामा के उत्तराधिकारी चयन में चीन के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेगा।