दहेज प्रथा पर गंभीर सवाल: ग्रेटर नोएडा में विवाहिता की मौत ने जगाई चिंता

दहेज प्रथा की गंभीरता पर एक नया मामला
NCRB डेटा: ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। यहां निक्की नाम की एक विवाहित महिला की मृत्यु ने दहेज प्रथा और महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। सीसीटीवी फुटेज में यह स्पष्ट देखा गया कि निक्की आग की लपटों में घिरी हुई सीढ़ियों से नीचे उतरने का प्रयास कर रही थी, और अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी।
NCRB की रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े
NCRB की रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े इस समस्या की गंभीरता को उजागर करते हैं। 2022 में दहेज हत्या के 6,450 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से लगभग 80% मामले बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और हरियाणा से थे। इसका अर्थ है कि औसतन हर तीन दिन में लगभग 54 महिलाएं दहेज प्रताड़ना या हत्या का शिकार होती हैं। ये आंकड़े केवल संख्या नहीं, बल्कि समाज के लिए एक दुखद वास्तविकता हैं।
दहेज के खिलाफ बने कानून
दहेज के खिलाफ बने कानून
भारत में दहेज के खिलाफ कई कठोर कानून लागू हैं, जिनमें शामिल हैं:
दहेज निषेध अधिनियम 1961
भारतीय दंड संहिता की धारा 304B (दहेज हत्या)
IPC की धारा 498A (क्रूरता के खिलाफ प्रावधान)
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005
फिर भी, न्याय प्रक्रिया में देरी, सुनवाई की धीमी गति और सामाजिक जागरूकता की कमी इसे समाप्त करने में बड़ी बाधा बनी हुई है।
दहेज प्रथा की जड़ें और कानून का इतिहास
दहेज प्रथा की जड़ें और कानून का इतिहास
दहेज प्रथा की शुरुआत बेटियों को आर्थिक सहायता देने के लिए की गई थी, लेकिन समय के साथ यह लालच और शोषण का साधन बन गई। 1961 में दहेज प्रतिषेध अधिनियम लागू किया गया, जो दहेज लेना-देना अपराध घोषित करता है। 1983 में IPC की धारा 498A और CrPC की धारा 198A जोड़ी गईं, ताकि पति या ससुराल पक्ष द्वारा की गई क्रूरता पर कार्रवाई की जा सके। IPC की धारा 304B के अनुसार, यदि शादी के 7 साल के भीतर महिला की मृत्यु दहेज विवाद से जुड़ी पाई जाती है, तो इसे दहेज हत्या माना जाएगा। साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B स्पष्ट करती है कि ऐसे मामलों में पति या ससुराल पक्ष पर दोष की presumption होगी.
महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई प्रावधान जोड़े हैं, लेकिन जब तक समाज में जागरूकता और मानसिकता में बदलाव नहीं होगा, तब तक दहेज हत्या जैसे मामले रुकना मुश्किल हैं। यह समय है कि कानून के साथ-साथ समाज भी एकजुट होकर इस कुप्रथा को समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाए।