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दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों के लिए शेल्टर होम: सुप्रीम कोर्ट का आदेश और चुनौतियाँ

दिल्ली-एनसीआर में सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में रखने का आदेश दिया है, जिसके बाद कई विशेषज्ञ और नेता इस निर्णय की व्यावहारिकता पर सवाल उठा रहे हैं। मेनका गांधी ने इसे 'असंभव' बताया है, जबकि राहुल गांधी ने इसे मानवीय नीति के खिलाफ बताया है। जानें इस मुद्दे पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ और क्या हैं संभावित चुनौतियाँ।
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दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों के लिए शेल्टर होम: सुप्रीम कोर्ट का आदेश और चुनौतियाँ

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

दिल्ली-एनसीआर के आवारा कुत्तों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सभी आवारा कुत्तों को अगले दो महीनों में पकड़कर शेल्टर होम में रखा जाए। इसके लिए आठ महीने का समय निर्धारित किया गया है। इस आदेश के बाद कुछ लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि कई नेता इस आदेश को लागू करने में आने वाली समस्याओं पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि दिल्ली-एनसीआर में लाखों कुत्तों को शेल्टर होम में कैसे रखा जाएगा?


विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का मानना है कि इस आदेश को निर्धारित समय में लागू करना 'असंभव' है। उनका कहना है कि एमसीडी के पशु जन्म नियंत्रण (ABC) और टीकाकरण कार्यक्रम की विफलता के कारण स्थिति और बिगड़ गई है। एमसीडी, एनजीओ के सहयोग से 20 पशु जन्म नियंत्रण केंद्र चलाती है, जो कि शेल्टर होम नहीं हैं, बल्कि नसबंदी के बाद कुत्तों को 10 दिनों तक रखने के लिए अस्थायी स्थान हैं। 10 दिन बाद कुत्तों को छोड़ दिया जाता है।


दिल्ली में कुत्तों की संख्या

यदि इन केंद्रों पर कुत्तों को रखा जाए, तो केवल 3 से 4 हजार कुत्तों को ही आश्रय मिल सकेगा, जबकि दिल्ली में कुत्तों की संख्या लगभग दस लाख है। 2009 में कुत्तों की जनगणना आखिरी बार हुई थी। तब से अब तक कुत्तों की संख्या का कोई सटीक आंकड़ा नहीं है, लेकिन अधिकारियों का अनुमान है कि यह संख्या दस लाख के करीब है। बिना सटीक आंकड़े के, कुत्तों के लिए रहने, खाने-पीने और देखभाल की व्यवस्था कैसे की जाएगी?


आर्थिक चुनौतियाँ

अगर एक कुत्ते पर प्रतिदिन 40 रुपये खर्च किए जाएं, तो दस लाख कुत्तों को खिलाने में लगभग 3 करोड़ रुपये या सालाना 1,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च आएगा। इसमें कुत्तों के रहने, इलाज, परिवहन और देखभाल करने वालों की लागत शामिल नहीं है। ऐसे में जब एमसीडी समय पर एनजीओ को पैसे नहीं दे पा रही है, तो वह कैसे इन कुत्तों के लिए महज आठ हफ्तों में शेल्टर की व्यवस्था कर पाएगी? यह एक बड़ा सवाल है।


मेनका गांधी का बयान

पूर्व सांसद और पशुओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली मेनका गांधी ने कहा कि बिना फंड के सुप्रीम कोर्ट की समय-सीमा में इसे करना 'असंभव' है। उन्होंने बताया कि दिल्ली में एक भी सरकारी शेल्टर नहीं है। कितने शेल्टर में 3 लाख कुत्ते रखेंगे? इन शेल्टर को बनाने में कम से कम 15 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। आपको ऐसी जगहों पर 3,000 शेल्टर बनाने होंगे, जहां कोई नहीं रहता। यह दो महीने में संभव नहीं है।


राहुल गांधी का समर्थन

राहुल गांधी ने कुत्तों को बेजुबान बताते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को हटाने का सुप्रीम कोर्ट का निर्देश दशकों से चली आ रही मानवीय और विज्ञान-समर्थित नीति से एक कदम पीछे है। ये बेज़ुबान आत्माएं कोई 'समस्या' नहीं हैं जिन्हें मिटाया जा सके। आश्रय, नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल सड़कों को बिना किसी क्रूरता के सुरक्षित रख सकते हैं।


PETA का दृष्टिकोण

PETA इंडिया ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ये कुत्ते 'stray' नहीं, बल्कि सामुदायिक कुत्ते हैं। ये कुत्ते पीढ़ियों से इसी क्षेत्र में रह रहे हैं और दिल्लीवासी हैं। खुशहाल समुदाय का समाधान 'नसबंदी' है, 'विस्थापन' नहीं।