दिल्ली में जल संकट: असुविधा की कहानी

असुविधा का सामना
हम भारतीयों के लिए 'परेशानी' या 'असुविधा' एक सामान्य अनुभव है। यह हर व्यक्ति, हर परिवार और हर गली का एक स्थायी सच है। हमारे जीवन का यह हिस्सा इसलिए सामान्य है क्योंकि हम उस व्यवस्था को स्वीकार कर चुके हैं, जिसमें शासन-प्रशासन नागरिकों को परेशान नहीं करता तो उसे सफल नहीं मानते। जब भी कोई असुविधा होती है, हम कंधे उचकाकर उसे सहन कर लेते हैं और जुगाड़ से आगे बढ़ जाते हैं। चाहे सड़क के गड्ढे हों, कूड़े का ढेर हो या गर्मियों में बिजली की कटौती, हम इसे सहन कर लेते हैं। यही है भारत की वास्तविकता।
कुछ लोग इसे हमारी सहनशीलता मानते हैं, जबकि अन्य इसे 'भारत की खूबसूरती' कहते हैं कि हम हर परेशानी को नजरअंदाज कर जी लेते हैं। सच्चाई यह है कि हमने पतन को स्वीकार कर लिया है और हम 'असुविधा की सुविधा' में जी रहे हैं। शासन की नाकामी को नागरिक अपने जुगाड़ से ढकते हैं, जबकि राज्य की व्यवस्था खस्ताहाल है।
हालांकि, हाल ही में एक ऐसी असुविधा का सामना करना पड़ा, जिसे नजरअंदाज करना संभव नहीं हो रहा। पिछले महीने से हमारे मोहल्ले में पानी में नालों का कीचड़ आने लगा। यह समस्या नलों की धार कम होने से शुरू हुई और बाद में टंकी भी खाली रहने लगी। आरडब्ल्यूए ने इसे छोटी समस्या बताकर टाल दिया।
फिर शुरू हुआ एक दुःस्वप्न—शिकायतें, चिट्ठियाँ, और रोज़ 100-200 रुपये देकर टैंक भराना, जो अगले दिन फिर खाली हो जाता। जब दबाव बढ़ा, तो पता चला कि मेट्रो निर्माण के दौरान पाइपलाइन फट गई है।
कुछ दिन पहले संकट और गहरा गया। अब पूरी कॉलोनी प्रभावित है। पानी नल में आया, तो वह सीवरेज और मलजल की तरह था। जल बोर्ड के निरीक्षक आए, फोटो खींची और वही कहा जो सबको पता था—गंदा पानी बह रहा है।
दिल्ली का वसंत कुंज, जिसे 'पॉश' माना जाता है, अब गंदे पानी की समस्या से जूझ रहा है। यह नया नहीं है। बचपन में जब गंदे पानी पर टीवी कैमरे आते थे, तब यह समस्या जल्दी हल हो जाती थी। लेकिन अब कोई परवाह नहीं करता।
यह सिर्फ वसंत कुंज की कहानी नहीं है। गुरुग्राम भी अपनी गंदगी में डूबा हुआ है। बांधवारी लैंडफिल अब पहाड़ बन चुका है। गर्मियों में जलता है और बरसात में जहर टपकाता है।
भारत हमेशा असुविधा के युग में जीता रहा है। लेकिन मोदी शासन के 11 साल बाद सवाल उठता है: अगर यह विकास का युग है, तो असुविधा क्यों बढ़ती जा रही है?
पिछली सरकारों में दिल्ली बेहतर चलती थी। लेकिन आज मेरी कॉलोनी की सड़कें पहली बारिश में ही दलदल बन जाती हैं।
दिल्ली में बीजेपी की डबल इंजन सरकार का यह विरोधाभास है। सेंट्रल विस्टा को 'कर्तव्य पथ' कहा गया है, लेकिन असली दिल्ली का हाल महंगे घर, ज़हरीली हवा, गंदा पानी और कूड़े का अंबार है।
सच यही है कि आज शासन का आकलन न आपके नल पर साफ पानी से होता है, न सड़क की सुरक्षा से। यह प्रतीकों से होता है। नागरिकों को बस जुगाड़ों में खंपे रहना होता है।
हम सहते हैं क्योंकि कोई चारा नहीं। हम ढलते हैं क्योंकि जीवन तो जीना है।
इसलिए हमारी असुविधा सिस्टम की नाकामी नहीं है। यह सिस्टम ही परेशानियों की गंगौत्री है।