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दिल्ली में बाढ़: मानवीय संकट और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

दिल्ली में बाढ़ अब केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं रह गई है, बल्कि यह एक मानव निर्मित संकट बन चुकी है। 2023 और 2024 में जलभराव की घटनाएं इस बात का संकेत देती हैं कि राजधानी के बुनियादी ढांचे में गंभीर खामियां हैं। खराब शहरी योजना, कमजोर ड्रेनेज सिस्टम और औद्योगिक कचरे की समस्या ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का स्वरूप बदलने से पुरानी ड्रेनेज व्यवस्था टिक नहीं पा रही है। इस लेख में इन समस्याओं का विश्लेषण किया गया है और समाधान के सुझाव दिए गए हैं।
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दिल्ली में बाढ़: मानवीय संकट और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

दिल्ली की बाढ़: एक गंभीर समस्या

दिल्ली में हर साल आने वाली बाढ़ अब केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं रह गई है, बल्कि यह एक मानव निर्मित संकट बन चुकी है। 2023 की भयंकर बाढ़ और 2024 में लगातार जलभराव की घटनाएं इस बात का संकेत देती हैं कि राजधानी के बुनियादी ढांचे में गंभीर खामियां हैं। मौसम में बदलाव एक कारण है, लेकिन इससे भी अधिक जिम्मेदार हैं खराब शहरी योजना, कमजोर ड्रेनेज सिस्टम और घटते प्राकृतिक जलाशय।


कंक्रीट के जंगल में जलभराव

दिल्ली कभी तालाबों और खेतों का शहर था, लेकिन अब यह कंक्रीट के ढेर में बदल चुका है। इससे बारिश का पानी जमीन में समाने के बजाय सड़कों और गलियों में जमा होने लगा है। करोल बाग, कनॉट प्लेस और संगम विहार जैसी घनी बस्तियों में जलभराव आम हो गया है। वहीं, छतरपुर, नरेला और द्वारका जैसे बाहरी इलाके, जो पहले प्राकृतिक बाढ़ अवरोधक थे, अब शहरी विकास के कारण प्रभावित हो चुके हैं।


ड्रेनेज सिस्टम की कमी

नालियों का जाल, पर बिना तालमेल


दिल्ली में 3,642 किलोमीटर लंबा ड्रेनेज नेटवर्क है, जिसे विभिन्न एजेंसियां जैसे PWD, MCD, NDMC और DDA संभालती हैं। इन एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी के कारण नालियां अक्सर कूड़े से भरी रहती हैं या अवैध निर्माण से बाधित होती हैं। कई क्षेत्रों में स्थिति इतनी खराब है कि मामूली बारिश में भी पानी का निकास नहीं हो पाता।


औद्योगिक कचरे की समस्या

औद्योगिक कचरा बन रहा नई मुसीबत


दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 32.79 मिलियन लीटर औद्योगिक कचरा उत्पन्न होता है, लेकिन इसका बहुत कम हिस्सा ही ट्रीटमेंट प्लांट्स में ठीक से साफ हो पाता है। ट्रीटमेंट प्लांट्स की कुल क्षमता 212.3 MLD है, लेकिन वे केवल 63.4 MLD कचरे को ही प्रोसेस कर पा रहे हैं। यह अपशिष्ट अक्सर ड्रेनेज सिस्टम में मिलकर स्थिति को और बिगाड़ देता है।


जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

जलवायु परिवर्तन और बदलती प्राथमिकताएँ


जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का स्वरूप भी बदल गया है, जिससे कम समय में तेज़ बारिश होती है। ऐसे में दिल्ली की पुरानी ड्रेनेज व्यवस्था टिक नहीं पा रही है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि ड्रेनेज सिस्टम को मजबूत किया जाए, प्राकृतिक नालों की सफाई और पुनर्जीवन हो, जलाशयों पर अतिक्रमण रोका जाए और स्थानीय समुदायों को जागरूक किया जाए। जब तक ये कदम नहीं उठाए जाते, हर मानसून राजधानी के लिए नया संकट ला सकता है।