दिल्ली में बाढ़ संकट: प्रशासनिक खामियों का खुलासा और जनता की बढ़ती चिंताएं

दिल्ली बाढ़ संकट 2025
दिल्ली बाढ़ संकट 2025 : दिल्ली एक बार फिर बाढ़ और जलभराव की समस्या का सामना कर रही है, जिससे राजधानी के प्रशासनिक तंत्र की गंभीर कमियों का पर्दाफाश हुआ है। जिन क्षेत्रों में पहले राहत शिविर तेजी से स्थापित होते थे, वहां अब स्थिति इतनी खराब हो गई है कि लोग अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मजबूर हैं।
राहत की कमी और प्रशासनिक चुप्पी
अब राहत नहीं, सिर्फ अफसरशाही की चुप्पी
स्थिति की गंभीरता यह है कि कई राहत शिविरों में समय पर टेंट नहीं लगाए गए, न ही पर्याप्त भोजन और साफ पानी उपलब्ध कराया गया। मच्छरों के प्रकोप से परेशान लोग खुद दवाइयां और क्रीम खरीदने को मजबूर हैं। लोगों की शिकायत है कि न तो कोई मंत्री और न ही प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे, जिससे स्थिति को नियंत्रित करने की कोई ठोस योजना नजर नहीं आई। इसे "प्रशासनिक चुप्पी" कहा जा रहा है।
AAP सरकार की याद
AAP सरकार की तुलना में मौजूदा हालात बदतर
दिल्ली की जनता अब पूर्व सरकार को याद कर रही है। उनका कहना है कि जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री थे, तब संकट के समय व्यवस्थाएं बेहतर होती थीं। नालों की सफाई समय पर होती थी, जलभराव की आशंका से पहले पंपिंग सिस्टम लगाया जाता था, और राहत शिविर मानवीय दृष्टिकोण से संचालित होते थे। केजरीवाल और उनके मंत्री खुद मौके पर जाकर व्यवस्थाओं की निगरानी करते थे, जिससे जनता को विश्वास मिलता था।
राजनीति से ऊपर मानवता
राजनीति के बजाय मानवता की जरूरत
अब जबकि दिल्ली में MCD और केंद्र दोनों जगह बीजेपी की सरकार है, स्थिति और भी खराब होती जा रही है। अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में राहत शिविरों का दौरा किया और देखा कि वर्तमान सरकारें केवल बयानबाज़ी में व्यस्त हैं, जबकि ज़मीन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही। उन्होंने अपील की कि राहत और बचाव कार्यों को राजनीतिक लाभ से ऊपर उठकर देखा जाए, क्योंकि यह एक मानवीय संकट है और किसी भी देरी का सीधा असर आम लोगों की ज़िंदगी पर पड़ता है।
सरकार की उपेक्षा का अनुभव
"पहले सरकार हमारे साथ थी, अब हम अकेले हैं"
बाढ़ से प्रभावित दिल्लीवासी अब उन दिनों को याद कर रहे हैं जब संकट के समय सरकार उनके साथ खड़ी रहती थी। अब स्थिति ऐसी हो गई है कि जनता को यह महसूस हो रहा है कि वे प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हैं। एक बुजुर्ग महिला ने कहा, "पहले कोई तो होता था जो हमारी सुध लेता था, अब तो लगता है जैसे हम अपने हाल पर छोड़ दिए गए हैं।"