दिल्ली में स्कूल फीस कंट्रोल बिल पर AAP की चिंताएं: क्या शिक्षा माफिया को मिलेगा बढ़ावा?

दिल्ली स्कूल फीस कंट्रोल बिल पर AAP की चिंताएं
दिल्ली स्कूल फीस कंट्रोल बिल: दिल्ली में भाजपा सरकार द्वारा प्रस्तावित स्कूल फीस कंट्रोल बिल को लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) की चिंताएं अब वास्तविकता बनती दिख रही हैं। यह बिल मानसून सत्र में विधानसभा में पेश किया जाएगा, लेकिन इसके बारे में उठ रहे सवालों ने दिल्लीवासियों की चिंताओं को और बढ़ा दिया है। 'आप' के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने इस बिल के कुछ प्रावधानों का विरोध करते हुए कहा कि इससे निजी स्कूलों और शिक्षा माफिया को मजबूती मिलेगी, जबकि माता-पिता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। उन्होंने शनिवार को पार्टी मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि नए बिल में फीस बढ़ोतरी की शिकायत के लिए 15 प्रतिशत माता-पिता के हस्ताक्षर अनिवार्य कर दिए गए हैं, जो आम जनता के लिए संभव नहीं होगा। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस बिल में स्कूलों के ऑडिट से संबंधित प्रावधान को हटा दिया गया है, जिससे सरकार की मंशा पर सवाल उठते हैं।
नए बिल में स्कूलों के ऑडिट का प्रावधान
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि भाजपा सरकार ने दिल्ली के निजी स्कूलों के फीस निर्धारण के लिए नया बिल लाने का निर्णय लिया है, लेकिन इसके प्रावधानों से यह स्पष्ट होता है कि यह बिल केवल स्कूलों के लिए लाभकारी होगा। उन्होंने कहा, 'नए कानून में स्कूलों के ऑडिट का प्रावधान हटा दिया गया है। इसके बाद यह कैसे पता चलेगा कि स्कूल ने किस आधार पर फीस बढ़ाई है?' उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार का यह कदम शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता को समाप्त करने जैसा है। अब किसी भी स्कूल में फीस बढ़ाने की शिकायत करने के लिए कम से कम 15 प्रतिशत माता-पिता की सहमति आवश्यक होगी। 'अगर किसी स्कूल में 3000 बच्चे हैं, तो 450 माता-पिता के हस्ताक्षर चाहिए होंगे। अब ये 450 माता-पिता कौन ढूंढेगा?' भारद्वाज ने सवाल उठाया।
फीस निर्धारण कमेटी में स्कूलों का दबदबा
सौरभ भारद्वाज ने इस बिल में फीस निर्धारण कमेटी के गठन को लेकर भी गंभीर चिंता व्यक्त की। नए कानून के अनुसार, इस कमेटी में 10 सदस्य होंगे, जिसमें पांच सदस्य स्कूलों के होंगे, जबकि पांच सदस्य माता-पिता के होंगे। लेकिन, 'आप' ने आरोप लगाया कि माता-पिता के सदस्य लॉटरी से चुने जाएंगे, और लॉटरी स्कूल के मालिक द्वारा की जाएगी। 'ऐसे में स्कूल अपने ही कर्मचारियों को इस कमेटी में शामिल करेंगे, जो फीस बढ़ाने में मदद करेंगे,' सौरभ भारद्वाज ने कहा।
शिक्षा मंत्री से सवाल
सौरभ भारद्वाज ने दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद से सवाल किया कि यदि यह बिल लागू होता है, तो जिन स्कूलों ने अप्रैल में फीस बढ़ाई है, क्या उनकी बढ़ाई गई फीस वापस होगी? उन्होंने यह भी पूछा कि 'ऑडिट का प्रावधान क्यों नहीं रखा गया है?' उनका कहना था कि बिना ऑडिट के यह कैसे तय किया जा सकता है कि स्कूलों को फीस बढ़ाने का अधिकार है या नहीं। इसके अलावा, भारद्वाज ने यह भी सवाल उठाया कि 'किसी भी स्कूल में फीस बढ़ोतरी की शिकायत के लिए 15 प्रतिशत माता-पिता के हस्ताक्षर क्यों आवश्यक हैं?'
शिक्षा निदेशक से अनुमति का प्रावधान भी खत्म
सौरभ भारद्वाज ने बताया कि पुराने कानून में यह प्रावधान था कि जिन स्कूलों को सरकार से जमीन मिली है, उन्हें फीस बढ़ाने से पहले शिक्षा निदेशक से अनुमति लेनी पड़ती थी, लेकिन नए कानून में यह प्रावधान हटा दिया गया है। 'अब स्कूलों को बिना किसी अनुमति के मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने का मौका मिलेगा।'