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दिल्ली में स्मॉग की गंभीरता: स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभाव

दिल्ली में स्मॉग की स्थिति गंभीर होती जा रही है, जिससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। अस्पतालों में सांस संबंधी मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है, और बच्चों में त्वचा रोगों के मामले बढ़ रहे हैं। सरकार की लापरवाही और पर्यावरण संरक्षण कानूनों का उल्लंघन इस समस्या को और बढ़ा रहा है। जानें इस मुद्दे पर और क्या कहा गया है और क्या समाधान हो सकते हैं।
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दिल्ली में स्मॉग की गंभीरता: स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभाव

दिल्ली में स्मॉग की स्थिति

जब सरकारें पर्यावरण संरक्षण कानूनों को इस तरह से तोड़ने में लगी हैं, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हो सके, तो उनसे किसी समाधान की उम्मीद करना निरर्थक है।


राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्मॉग की स्थिति में सुधार की कोई उम्मीद नहीं दिखती। इसका गंभीर असर यहां के निवासियों पर पड़ रहा है। भारत सरकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि अस्पतालों में सांस संबंधी समस्याओं के मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जो प्रदूषित हवा से जुड़ी है। स्वास्थ्य राज्यमंत्री विक्रमजीत एस. साहनी ने राज्यसभा में बताया कि 2022 से 2024 के बीच दो लाख से अधिक सांस संबंधी मरीजों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। बाल रोग विशेषज्ञों के अनुसार, जहरीली हवा के कारण त्वचा रोगों के मामले भी बढ़ रहे हैं, खासकर बच्चों में।


बुजुर्गों के लिए बाहर निकलना कितना खतरनाक हो गया है, इस पर सोशल मीडिया पर चर्चाएं चल रही हैं। लेकिन इस गंभीर स्थिति के बावजूद, सरकार के अधिकारी बेफिक्र बने हुए हैं। जब स्थिति बिगड़ती है, तो वे पंजाब में पराली जलाने का मुद्दा उठाकर अपने कर्तव्यों से बच निकलते हैं। यह तर्क अब इस हद तक बेतुका हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने अधिकारियों को ऐसे बहाने न बनाने की सलाह दी। उन्होंने सही कहा कि प्रदूषण के कारण अब ढांचागत हो चुके हैं, और उनके समाधान की आवश्यकता है। लेकिन जब सरकारें पर्यावरण संरक्षण कानूनों को इस तरह से तोड़ने में लगी हैं, तो उनसे समाधान की उम्मीद करना व्यर्थ है।


हाल ही में अरावली पहाड़ियों में खनन के लिए जो दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, वे स्पष्ट करते हैं कि सत्ताधारी नेताओं को पर्यावरण या प्रदूषण की कोई चिंता नहीं है। कुछ साल पहले, स्मॉग के दौरान ऑड-इवन जैसे परिवहन नियमों पर चर्चा होती थी, जिससे लोगों में जागरूकता बढ़ती थी। लेकिन अब ऐसी कोई चिंता नहीं दिखाई देती। अब बस यह प्रयास है कि जब तक यह मौसम गुजर न जाए, स्थिति को छिपाने की कोशिश की जाए!