दिवाली पर बस किराए में बेतहाशा वृद्धि, यात्रियों की जेब पर भारी

दिवाली का त्योहार और यात्रा की चुनौतियाँ
नई दिल्ली। दीपावली का पर्व ऐसा है, जब दूर-दराज में काम कर रहे लोग अपने परिवार के पास लौटते हैं। लेकिन घर पहुँचते ही उनकी जेबें हल्की हो जाती हैं। परिवार के साथ त्योहार मनाने की मजबूरी में लोग टिकट की कीमतों पर ध्यान नहीं देते और जैसे भी टिकट मिलते हैं, बुक कर लेते हैं।
इस स्थिति को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर के साथ किराए की सूची साझा की, जिसमें बताया गया कि दिवाली के दौरान बस किराए में भारी वृद्धि हुई है, जिससे 'हवाई चप्पल' पहनने वाले भी बस में नहीं चढ़ पा रहे हैं।
'हवाई चप्पल' वाले बस में भी नहीं चढ़ पा रहे pic.twitter.com/6n8DPxzALS
— Congress (@INCIndia) October 14, 2025
लखनऊ का किराया 6 हजार रुपए
दिवाली के अवसर पर प्राइवेट बसों के टिकट की कीमतें आसमान छू रही हैं। यदि आप दिल्ली से लखनऊ यात्रा करना चाहते हैं, तो आपको टिकट की कीमत जानकर आश्चर्य होगा। जो स्लीपर बस का टिकट सामान्य दिनों में 600 रुपए का होता है, वह दिवाली पर 6000 रुपए हो गया है। वहीं, सिटिंग टिकट की कीमत 3200 रुपए तक पहुँच गई है। यह स्थिति केवल दिल्ली-लखनऊ रूट पर नहीं, बल्कि गोरखपुर, बलिया, प्रयागराज और यूपी-बिहार जाने वाली अधिकांश प्राइवेट बसों में भी है।
अन्य शहरों के किराए की जानकारी
दिल्ली से कानपुर का किराया 700 से बढ़कर 3500 रुपए हो गया है। दिल्ली से वाराणसी का किराया 5770 रुपए, गोरखपुर का 7304 रुपए और प्रयागराज का 7350 रुपए तक पहुँच गया है। बुकिंग वेबसाइटों और ट्रैवल एजेंसियों के अनुसार, 18, 19, 21 और 22 अक्टूबर को अधिकांश बसें पहले से ही फुल हैं। लोग हफ्तों पहले टिकट बुक कर चुके हैं, जबकि अब अंतिम समय में बुकिंग करने वालों को दोगुना या तीन गुना किराया चुकाना पड़ रहा है।
यात्रियों की राय
दिवाली पर घर जाने वाले यात्रियों का कहना है कि वे काम के सिलसिले में दूर हैं और यही त्योहार है जब उन्हें छुट्टी मिलती है। घर पहुँचकर परिवार के साथ दिवाली मनाना उनके लिए महत्वपूर्ण है। साल में एक बार ऐसा मौका आता है, और प्राइवेट बसें इसका फायदा उठाती हैं।
यात्री बताते हैं कि ट्रेनों में महीनों पहले टिकट फुल हो जाते हैं। यदि त्योहार पर ट्रेन से यात्रा करने का सोचें, तो पैर रखने की भी जगह नहीं मिलती। ऐसे में बस ही एकमात्र विकल्प बचता है, और मजबूरी में उन्हें महंगे दाम पर टिकट खरीदना पड़ता है। सरकारी बसों का समय भी निश्चित नहीं होता, जिससे यात्रा में और कठिनाई होती है।