दूल्हे के सिर पर सेहरा बांधने की परंपरा: जानें इसके पीछे के रहस्य
सेहरा बांधने की प्राचीन परंपरा
सदियों से चली आ रही है सेहरा बांधने की परंपरा
विवाह के अवसर पर विभिन्न धर्मों में कई रस्में निभाई जाती हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण रस्म है दूल्हे के सिर पर सेहरा बांधना। यह केवल सजावट नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं भी हैं।
भारतीय संस्कृति में सेहरा का विशेष महत्व है। कई बॉलीवुड फिल्मों और गानों में इसका उल्लेख मिलता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसके पीछे कई सामाजिक और धार्मिक कारण हैं।
चेहरा ढकने का महत्व
विवाह के दिन, हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों में दूल्हे को बारात के निकलने से पहले सजाया जाता है। इस दौरान दूल्हे के सिर पर सेहरा बांधना अनिवार्य होता है। सेहरा आमतौर पर फूलों, मोती, कुंदन, और चमकीले धागों से बनाया जाता है। यह दूल्हे के चेहरे को ढकता है।
नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा
सेहरा को आमतौर पर मुकुट, विवाह मुकुट, किरीट और मउर भी कहा जाता है। दूल्हे के चेहरे को सेहरे से ढकने का एक कारण यह है कि विवाह की रस्मों के दौरान दूल्हे और दुल्हन का चेहरा किसी को नहीं दिखना चाहिए। इससे उन पर नकारात्मक ऊर्जा या बुरी नजर नहीं पड़ती।
शास्त्रों में वर्णन
इसी कारण दुल्हन का चेहरा घूंघट से और दूल्हे का चेहरा सेहरे से ढका जाता है। शास्त्रों में भी जटा मुकुट और मउर का उल्लेख मिलता है, जिसमें भगवान शिव के गण उनकी जटाओं का मुकुट बना रहे हैं।
इस चौपाई से यह स्पष्ट होता है कि भगवान शिव ने विवाह के समय सांपों से बना मुकुट पहना था। शास्त्रों में विवाह मुकुट को पंचदेव से सुशोभित नर का श्रृंगार कहा गया है, इसलिए आम लोग भी इस अवसर पर सेहरा पहनते हैं।
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