देर से गेहूं की बुवाई: ICAR की विशेष किस्मों से किसानों को मिलेगी मदद
देर से बुवाई की चुनौतियाँ
भारत के विभिन्न राज्यों में गन्ना और धान की कटाई में देरी के कारण गेहूं की बुवाई अक्सर दिसंबर के बाद जनवरी तक टल जाती है। इस स्थिति में किसानों के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह होता है कि सीमित समय और बदलते मौसम में वे कैसे अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित कुछ विशेष गेहूं की किस्में इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करती हैं। सही किस्म का चयन करके किसान जनवरी में भी संतोषजनक उत्पादन और बेहतर आय प्राप्त कर सकते हैं।
जनवरी में गेहूं की बुवाई की कठिनाइयाँ
जब गेहूं की बुवाई देर से होती है, तो इसे कम समय में बढ़ने की आवश्यकता होती है।
- तापमान तेजी से बढ़ने लगता है।
- सिंचाई और पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ सकता है।
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस स्थिति में गलत किस्म बोई जाए, तो उपज में 20 से 30 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। इसलिए वैज्ञानिक रूप से विकसित किस्मों का चयन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
ICAR की भूमिका और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
ICAR हर साल विभिन्न जलवायु और बुवाई के समय को ध्यान में रखते हुए गेहूं की नई किस्में विकसित करता है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि
"देर से बुवाई के लिए विकसित किस्में कम अवधि में दाना भरने की क्षमता रखती हैं और गर्मी के प्रभाव को सहन कर सकती हैं।"
इन शोधों के आधार पर, नीचे दी गई किस्में किसानों के लिए भरोसेमंद साबित हो रही हैं।
PBW 550
कम पानी में भी स्थिर पैदावार
PBW 550 को विशेष रूप से गन्ने के बाद गेहूं की बुवाई के लिए उपयुक्त माना जाता है।
- औसत उत्पादन 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
- कम सिंचाई में भी अच्छी वृद्धि।
- उत्तर भारत के कई जिलों में सफल परीक्षण।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह किस्म उन किसानों के लिए फायदेमंद है जहां पानी की उपलब्धता सीमित है।
DBW 234
देर से बुवाई में भरोसेमंद विकल्प
DBW 234 तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
- फसल अवधि लगभग 126 से 134 दिन।
- औसत उत्पादन 35 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर।
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, इस किस्म से किसानों का जोखिम कम होता है और उत्पादन स्थिर बना रहता है।
HD 3086
उच्च उत्पादन और बेहतर दाने की गुणवत्ता
HD 3086 को उच्च पैदावार वाली किस्म के रूप में जाना जाता है।
- पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में उपयुक्त।
- 140 से 145 दिनों में 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज।
- दाने की गुणवत्ता अच्छी होने से बाजार में मांग अधिक।
कृषि मंडियों में इस किस्म का गेहूं अपेक्षाकृत बेहतर दाम पर बिकता है।
DBW 316
पूर्वी भारत के लिए पोषण और उत्पादन दोनों
धान की देर से कटाई वाले क्षेत्रों के लिए DBW 316 विशेष रूप से अनुशंसित है।
- पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड के लिए उपयुक्त।
- औसत उत्पादन 68 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
- प्रोटीन और जिंक की मात्रा अधिक।
पोषण मूल्य अधिक होने के कारण इस किस्म से किसानों को बाजार में बेहतर कीमत मिलने की संभावना रहती है।
HI 1634
गर्मी सहन करने वाली किस्म
HI 1634 मध्य भारत के किसानों के लिए उपयोगी मानी जाती है।
- मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान के लिए उपयुक्त।
- समय पर और थोड़ी देर से दोनों स्थितियों में बुवाई संभव।
- औसत उत्पादन लगभग 51.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
विशेषज्ञ बताते हैं कि यह किस्म बढ़ते तापमान में भी संतुलित उत्पादन देती है।
किसानों के लिए यह जानकारी क्यों जरूरी है
- जनवरी में भी गेहूं की खेती संभव।
- सही किस्म से लागत कम और मुनाफा अधिक।
- मौसम जोखिम से बेहतर सुरक्षा।
- बाजार में गुणवत्ता के कारण अच्छी कीमत।
सही निर्णय लेने से किसान अपनी आय को स्थिर रख सकते हैं, भले ही बुवाई देर से क्यों न हो।
आगे क्या करें
कृषि विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि किसान:
- स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र से बीज की पुष्टि करें।
- बुवाई से पहले मिट्टी परीक्षण कराएं।
- सिंचाई और खाद का संतुलन बनाए रखें।
