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देवी पार्वती और माता मैना का संवाद: कर्मों का महत्व

इस लेख में देवी पार्वती और माता मैना के बीच संवाद का वर्णन किया गया है, जिसमें देवी पार्वती ने माता को कर्मों के महत्व के बारे में समझाया। माता मैना के विलाप और हिमवान की चिंता के बीच, मुनि नारद ने देवी पार्वती के पूर्व जन्म की कथा सुनाई। यह कथा न केवल माता मैना को समझाने का प्रयास है, बल्कि यह दर्शाती है कि हमारे जीवन में जो भी घटनाएँ घटित होती हैं, वे हमारे कर्मों का परिणाम होती हैं। जानें इस दिलचस्प कथा के माध्यम से कैसे विवाह की तैयारियाँ की गईं।
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देवी पार्वती और माता मैना का संवाद: कर्मों का महत्व

माता मैना का विलाप

देवी पार्वती को अपनी गोद में लिए हुए माता मैना हृदय विदारक विलाप कर रही थीं। केवल माता मैना ही नहीं, बल्कि हिमाचल की अन्य महिलाएं भी इसी प्रकार का क्रंदन कर रही थीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे देवी पार्वती का विवाह नहीं, बल्कि उनका अंतिम संस्कार हो रहा हो। सभी को इस तरह विलाप करते देख, देवी पार्वती ने माता मैना को समझाते हुए कहा:


कर्मों की गति का उपदेश

जननिहि बिकल बिलोक भवानी। बोली जुत बिबेक मृदु बानी।।


अस बिचारि सोचहि मति माता। सो न टरइ जो रचइ बिधाता।।


देवी पार्वती ने कोमल स्वर में माता मैना को कर्मों की गति का उपदेश दिया। उन्होंने कहा, "हे माता! आज तक कौन कर्मों पर विजय प्राप्त कर सका है? विधाता द्वारा जो लिखा गया है, वह कभी नहीं बदलता। इसलिए, व्यर्थ की चिंता मत करो। चिंता से शरीर का नाश निश्चित है। बेहतर होगा कि आप चिंतन में मन लगाएं।"


भाग्य और दोष

करम लिखा जौं बउर नाहू। तौं कत दोसू लगाइअ काहू।।


तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका। मातु ब्यर्थ जनि लेहू कलंका।


उन्होंने आगे कहा, "यदि मेरे भाग्य में बावला पति लिखा है, तो किसी और को इसका दोष क्यों दिया जाए? दोष देकर आप अपने भाग्य को नहीं बदल सकतीं। इससे आप स्वयं परेशान होंगी और समस्या और बढ़ जाएगी।"


कर्मों का सार

पार्वती ने माता मैना को समझाया कि हमारे जीवन में जो भी सुख-दुख होते हैं, वे हमारे कर्मों का परिणाम हैं। यदि हमारे भाग्य में कुछ नहीं लिखा है, तो वह स्वप्न में भी नहीं होगा। इसलिए, विधाता द्वारा लिखे विधान को स्वीकार करें और चिंता छोड़ दें। यही नीति और प्रेम का मार्ग है।


हिमवान की चिंता

जब हिमवान को यह समाचार मिला, तो उन्होंने चिंता जताई कि कहीं माता मैना देवी पार्वती को अनादर न कर दें। उन्होंने मुनि नारद और सप्तर्षियों को बुलाया ताकि माता मैना को समझाया जा सके।


मुनि नारद का उपदेश

मुनि नारद ने माता मैना को देवी पार्वती के पूर्व जन्म की कथा सुनाई, जिसमें बताया गया कि कैसे देवी पार्वती पहले सती थीं और भगवान शिव से एक पाप कर बैठीं। उन्होंने कहा कि देवी पार्वती केवल आपकी पुत्री नहीं, बल्कि जग जननी हैं।


अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि॥


जग संभव पालन लय कारिनि। निज इच्छा लीला बपु धारिनि॥


विवाह की तैयारी

मुनि नारद के वचनों से सभी का विषाद मिट गया। यह समाचार हिमाचल के हर घर में फैल गया। हिमवान और माता मैना आनंदित हुए और देवी पार्वती के चरणों की वंदना करने लगे। विवाह की सभी तैयारियाँ की गईं और भगवान शिव को आमंत्रित किया गया।