द्वादशी श्राद्ध: पितृ पक्ष में श्रद्धांजलि देने का विशेष दिन

पितरों को प्रसन्न करने का सही तरीका
Dwadashi Shradh, नई दिल्ली: पितृ पक्ष का यह समय हमारे पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और आभार व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्मों से पितरों को शांति मिलती है और वे अपने वंशजों को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इस वर्ष द्वादशी श्राद्ध का आयोजन गुरुवार, 18 सितंबर 2025 को किया जाएगा। यह श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए विशेष रूप से किया जाता है, जिनकी मृत्यु द्वादशी तिथि को हुई थी। कुछ लोग इसे उन संन्यासियों के लिए भी करते हैं, जिन्होंने गृहस्थ जीवन को त्याग दिया।
पिंडदान करने की विधि
- श्राद्ध के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- घर की दक्षिण दिशा को साफ करें और वहां गंगाजल छिड़ककर उसे पवित्र करें।
- श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जैसे तिल, जौ, चावल, कुश, गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी, और पितरों को पसंद आने वाले पकवान तैयार करें।
- दोपहर 12 बजे के बाद श्राद्ध का शुभ मुहूर्त शुरू होता है, इसलिए सभी तैयारी समय पर कर लें।
- एक थाली में जौ का आटा, तिल और चावल मिलाकर पिंड बनाएं। फिर जल में तिल मिलाकर पितरों के लिए तर्पण करें।
- पिंड अर्पित करने से पहले, पितरों का आवाहन करें और उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करें।
- पिंडों पर गंगाजल, दूध, शहद और पुष्प अर्पित करें।
- पिंड को धूप-दीप दिखाएं और हाथ जोड़कर पितरों से प्रार्थना करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराना श्राद्ध का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। कम से कम एक ब्राह्मण को श्रद्धापूर्वक भोजन कराएं।
- भोजन के बाद, ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें और उनका आशीर्वाद लें।
- यदि ब्राह्मण को भोजन कराना संभव न हो, तो भोजन की सामग्री किसी जरूरतमंद को दान कर दें।
- पिंडदान के बाद, पितरों का अंश मानकर भोजन का एक हिस्सा कौओं, एक गाय और एक कुत्ते के लिए निकालें।
- मान्यता है कि इन जीवों के माध्यम से भोजन सीधे पितरों तक पहुंचता है।
द्वादशी श्राद्ध का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और वे अपने वंशजों को सभी दुखों से मुक्त होने का आशीर्वाद देते हैं। द्वादशी श्राद्ध का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह उन पितरों को समर्पित है, जो मृत्यु के बाद मोक्ष की तलाश में होते हैं। इस दिन विधिपूर्वक पिंडदान करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि परिवार में आने वाली बाधाएं भी दूर होती हैं।