नायरा और माइक्रोसॉफ्ट विवाद: भारतीय कंपनियों की अमेरिकी निर्भरता पर सवाल

नायरा और माइक्रोसॉफ्ट के बीच विवाद
नायरा और माइक्रोसॉफ्ट के बीच हालिया विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय कंपनियां, विशेषकर सूचना एवं संचार तकनीक (ICT) क्षेत्र में, अमेरिकी कंपनियों की इच्छाओं पर निर्भर हैं। इस मुद्दे का समाधान निकालना आवश्यक है।
गुजरात के वाडीनगर में स्थित नायरा एनर्जी रिफाइनरी में रूस की कंपनी रोसनेफ्त का 49 प्रतिशत हिस्सा है। हाल ही में, यूरोपीय संघ (ईयू) ने रूस से कच्चे तेल के व्यापार पर प्रतिबंध लगाया, जिससे यह रिफाइनरी भी प्रभावित हुई। हालांकि, नायरा को तत्काल समस्या माइक्रोसॉफ्ट के कारण हुई। नायरा ने अपने संचार और उत्पादकता उपकरणों का प्रबंधन माइक्रोसॉफ्ट को सौंप रखा था। जैसे ही ईयू ने प्रतिबंध लागू किया, माइक्रोसॉफ्ट ने नायरा की सेवाएं रोक दीं, जिससे नायरा का कारोबार लगभग ठप हो गया।
इस सप्ताह सोमवार को, नायरा ने माइक्रोसॉफ्ट के इस एकतरफा निर्णय के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। याचिका में नायरा ने बताया कि उसने माइक्रोसॉफ्ट की सेवाओं के लिए अग्रिम भुगतान किया था, और बिना सूचना के सेवाएं रोकना दोनों कंपनियों के बीच हुए अनुबंध का उल्लंघन है। चूंकि माइक्रोसॉफ्ट की स्थिति कमजोर थी, उसने नायरा के लिए अपनी सेवाएं फिर से शुरू कर दीं। लेकिन इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय कंपनियां, विशेषकर ICT क्षेत्र में, अमेरिकी कंपनियों की इच्छाओं पर निर्भर हैं।
जब अंतरराष्ट्रीय तनाव व्यापार पर प्रभाव डालने लगा है, तब विदेशी सरकारों के प्रति उत्तरदायी कंपनियों पर निर्भरता भारत के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकती है। यह कड़वी सच्चाई है कि यदि माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, मेटा, अमेज़न जैसी कंपनियां सेवाएं देना बंद कर दें, तो भारत का पूरा ICT क्षेत्र ठप हो जाएगा। स्पष्ट है कि भारत ने इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का रास्ता नहीं चुना है, जिससे वह एक बड़ा जोखिम उठाने को मजबूर है। समाधान यह है कि इस कमी को पूरा किया जाए, लेकिन यह कार्य आसान नहीं होगा। ऐसे में यह विचारणीय है कि क्या भारत को ICT क्षेत्र में अन्य देशों के सेवा प्रदाताओं के लिए अपने बाजार को खोलकर अपनी कंपनियों के लिए विकल्प उपलब्ध नहीं कराने चाहिए?