निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया पर विश्वास की आवश्यकता

मतदाता सूचियों में संशोधन की प्रक्रिया
मतदाता सूचियों में संशोधन की विशेष प्रक्रिया संवैधानिक रूप से मान्य है, इसलिए इस पर विवाद की कोई आवश्यकता नहीं है। निर्वाचन आयोग को इस विषय में सभी के मन में विश्वास स्थापित करना अनिवार्य है।
यह पहली बार नहीं है जब निर्वाचन आयोग मतदाता सूचियों का गहन संशोधन करने जा रहा है। इसलिए इस प्रक्रिया को लेकर किसी प्रकार की सनसनी या भय फैलाने की आवश्यकता नहीं है। आयोग ने यह प्रक्रिया भारतीय नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत पूरी करने का निर्णय लिया है। इस पर संदेह उत्पन्न करने या 'कागज नहीं दिखाएंगे' जैसे अभियानों का कोई औचित्य नहीं है। यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि मौजूदा मतदाता सूचियों को लेकर संदेह का माहौल विपक्षी दलों द्वारा निर्मित किया गया है। ऐसे में निर्वाचन आयोग ने दो दशकों बाद मतदाता सूचियों के संशोधन के लिए विशेष अभियान चलाने का निर्णय लिया है, तो इसकी प्रारंभिक प्रतिक्रिया सकारात्मक होनी चाहिए। फिर भी, वर्तमान देश के माहौल में इस प्रक्रिया को लेकर विश्वास स्थापित करने की विशेष आवश्यकता है।
इसका मुख्य कारण निर्वाचन आयोग की साख पर उठते सवाल हैं। ऐसे में जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के मन में यह प्रश्न होना स्वाभाविक है कि क्या आयोग इस प्रक्रिया को निष्पक्षता और विश्वसनीयता के साथ संपन्न कर पाएगा? या इस दौरान 'घुसपैठियों' को मतदाता सूची से हटाना एक प्रमुख मुद्दा बन जाएगा, जिसका लाभ एक विशेष राजनीतिक समूह उठाएगा? इसलिए, मतदाता सूची और चुनाव प्रक्रिया को दोषमुक्त बनाने की मुहिम शुरू करने से पहले आयोग को अपने प्रति विश्वास स्थापित करना आवश्यक है। उसे यह स्वीकार करना चाहिए कि हाल के वर्षों में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय वह अपनी साख को बनाए रखने में विफल रहा है।
नतीजतन, ऐसी धारणाएं बन गई हैं कि मतदान कार्यक्रम तय करने से लेकर सभी समुदायों के मतदाताओं को भयमुक्त परिस्थितियों में मताधिकार प्रदान करने और मतगणना प्रक्रिया को संदेहमुक्त रखने का दायित्व वह अपेक्षित तरीके से नहीं निभा रहा है। इसी पृष्ठभूमि में, मतदाता सूची की विशेष संशोधन प्रक्रिया को संदेह और सवालों से परे रखना आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस पर खरा उतरने के लिए उसे संवाद स्थापित कर संदेह दूर करने के विशेष प्रयास करने चाहिए।