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नीतीश कुमार की नई सरकार: बीजेपी का कोइरी समुदाय पर ध्यान केंद्रित

बिहार में नीतीश कुमार ने दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, जिसमें बीजेपी ने सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा को उपमुख्यमंत्री बनाया है। इस बार बीजेपी का ध्यान ओबीसी वर्ग, विशेषकर कोइरी समाज पर है। कुर्मी-कोइरी गठजोड़ की राजनीतिक ताकत को देखते हुए, बीजेपी ने अपनी रणनीति को मजबूत किया है। जानें कैसे यह गठजोड़ बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और बीजेपी की ओबीसी वोटों पर पकड़ कैसे बढ़ रही है।
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नीतीश कुमार की नई सरकार: बीजेपी का कोइरी समुदाय पर ध्यान केंद्रित

नीतीश कुमार ने फिर से संभाली मुख्यमंत्री की कुर्सी


नई दिल्ली: बिहार में नीतीश कुमार ने एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। गुरुवार को यह उनका दसवां कार्यकाल शुरू हुआ। इस बार बीजेपी ने नीतीश को सरकार की बागडोर सौंपते हुए सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा को उपमुख्यमंत्री बनाया है। नीतीश ने अपनी कैबिनेट में जातीय संतुलन और सामाजिक प्रतिनिधित्व को प्राथमिकता दी है, जबकि बीजेपी ने अपने राजनीतिक समीकरणों को मजबूत करने की योजना बनाई है।


नीतीश 10.0: संतुलित टीम का गठन

मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्रियों की टीम सामाजिक रूप से संतुलित नजर आती है। बीजेपी ने पिछड़ी और अगड़ी जातियों के बीच संतुलन बनाते हुए सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को महत्वपूर्ण पद दिए हैं। बिहार में बीजेपी ने सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाकर स्पष्ट संकेत दिया है कि उसका ध्यान ओबीसी वर्ग, विशेषकर कोइरी समाज पर है। यूपी में केशव प्रसाद मौर्य और हरियाणा में नायब सिंह सैनी को आगे बढ़ाने के बाद, बिहार में भी कोइरी नेतृत्व को मजबूती दी जा रही है। यह सवाल उठता है कि बीजेपी कोइरी समाज को इतना महत्व क्यों दे रही है।


कुर्मी-कोइरी गठजोड़ का महत्व

बिहार की राजनीति में कुर्मी-कोइरी गठजोड़ का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। नीतीश कुमार खुद कुर्मी जाति से हैं, जबकि सम्राट चौधरी कोइरी समाज से आते हैं। बिहार में यादवों के बाद कुर्मी और कोइरी ओबीसी जातियों में सबसे प्रभावशाली माने जाते हैं। यही कारण है कि यह जोड़ी फिर से सत्ता के केंद्र में नजर आ रही है।


गैर-यादव ओबीसी पर बीजेपी की पकड़

नीतीश कुमार की उम्र 75 वर्ष है, जबकि सम्राट चौधरी 57 वर्ष के हैं। माना जा रहा है कि बीजेपी उन्हें भविष्य के नेता के रूप में तैयार कर रही है। विधानसभा चुनाव में कोइरी समाज के 24 और कुर्मी समाज के 14 विधायक चुने गए हैं। एनडीए को इन दोनों जातियों से लगभग 71% वोट मिले, जो 2020 में 66% थे। यादव समाज पर आरजेडी का प्रभाव होने के कारण, बीजेपी गैर-यादव ओबीसी पर अपनी पकड़ मजबूत कर रही है। इसी रणनीति के तहत सम्राट चौधरी को लगातार महत्वपूर्ण पद दिए गए हैं।


ओबीसी वोटों पर बीजेपी का ध्यान

2014 के बाद से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने ओबीसी वोटों पर ध्यान केंद्रित किया है। कोइरी समुदाय को मजबूत नेतृत्व देने की नीति के तहत यूपी में केशव प्रसाद मौर्य और हरियाणा में नायब सिंह सैनी जैसे नेता उभरे हैं। बीजेपी ने इन नेताओं को बड़े पद देकर उनके राजनीतिक कद को बढ़ाया है।


कोइरी समाज की जनसंख्या

कोइरी समाज की जनसंख्या कई राज्यों में फैली हुई है। इन्हें मौर्य, कुशवाहा, सैनी, काछी आदि नामों से भी जाना जाता है। बिहार में इनकी आबादी लगभग 6%, यूपी में 7% और हरियाणा में 4% है। ओबीसी में यादवों के बाद यह दूसरी सबसे बड़ी आबादी है, इसलिए चुनावों में यह वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है।


भाजपा की स्पष्ट रणनीति

कोइरी समाज खुद को मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक का वंशज मानता है। कई क्षेत्रों में बौद्ध परंपराओं का पालन करने वाले लोग भी इसी समुदाय से आते हैं। बीजेपी न केवल राजनीतिक रूप से, बल्कि वैचारिक रूप से भी इस समाज को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है। कुल मिलाकर, बिहार से लेकर यूपी और हरियाणा तक बीजेपी एक स्पष्ट रणनीति पर काम कर रही है। गैर-यादव ओबीसी नेतृत्व को मजबूत करके वोट बैंक को अपने साथ जोड़ना। बिहार में सम्राट चौधरी की दोबारा ताजपोशी इस रणनीति का ताजा उदाहरण है.