नेतन्याहू ने हमास के साथ शांति वार्ता में यूरोपीय संघ की अनुपस्थिति पर जताई नाराजगी

इजरायल और हमास के बीच वार्ता का नया मोड़
नई दिल्ली: इजरायल पर हुए हमले को आज दो वर्ष पूरे हो गए हैं। इस संघर्ष को समाप्त करने के प्रयास में मिस्र में दोनों पक्षों के बीच बातचीत चल रही है, जिसमें हमास ने बंधकों की अदला-बदली के लिए कुछ शर्तें रखी हैं। वहीं, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सीजफायर योजना में यूरोपीय संघ की अनुपस्थिति की कड़ी आलोचना की है।
सोमवार को मिस्र में हमास और इजरायल के प्रतिनिधियों के बीच बैठक हुई। हमास ने यह शर्त रखी है कि इजरायली सेना को जनवरी में हुए सीजफायर समझौते के अनुसार गाजा के जनसंख्या वाले क्षेत्रों से हटकर अपने पूर्व ठिकानों पर लौटना होगा। इसके साथ ही, इजरायली वायुसेना को प्रतिदिन कम से कम 10 घंटे तक लड़ाकू विमानों और ड्रोन की उड़ानों पर रोक लगानी होगी। हमास ने यह भी मांग की है कि बंदियों की रिहाई के दिन 12 घंटे तक कोई ड्रोन या विमान न उड़ाए जाएं।
नेतन्याहू ने आरोप लगाया कि गाजा में संघर्ष समाप्त करने के लिए चल रही प्रक्रियाओं में यूरोपीय संघ पूरी तरह से अनुपस्थित है। उन्होंने विदेशी मीडिया से बातचीत में कहा कि यूरोप फिलिस्तीनी आतंकवाद और कट्टरपंथी इस्लामी समूहों के सामने झुक गया है।
उन्होंने कहा, "यूरोप अब अप्रासंगिक हो गया है और उसने कमजोरी दिखाई है। जो काम यूरोपीय संघ को करना चाहिए था, वह अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप कर रहे हैं, जिससे आतंकवादी तत्वों का सफाया होगा।" नेतन्याहू ने यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों में से 15 द्वारा फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने के निर्णय की आलोचना की और इस पर पुनर्विचार की उम्मीद जताई।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, "कल्पना कीजिए कि 9/11 के बाद लोग कहें कि ओसामा बिन लादेन और अल-कायदा को राज्य दे दिया जाए। हम न केवल उन्हें एक राज्य देंगे, बल्कि वह न्यूयॉर्क से एक मील दूर होगा, जैसा कि वे सुझा रहे हैं।" उन्होंने कहा कि इससे शांति को बढ़ावा नहीं मिलेगा। पहले ताकत होनी चाहिए, फिर शांति।
नेतन्याहू ने कहा, "अब ये यूरोपीय नेता क्या कह रहे हैं? आइए इजरायल को इस हद तक कमजोर कर दें कि वह अपने अस्तित्व के लिए एक और फिलिस्तीनी राज्य के खिलाफ लड़े। यह बेतुका है।"