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नेपाल में जनाक्रोश: सत्ता परिवर्तन और भारत पर प्रभाव

नेपाल में हालिया जनाक्रोश ने राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव लाया है। इस लेख में, हम नेपाल के साथ-साथ अफगानिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में हुए सत्ता परिवर्तनों के कारणों और प्रभावों का विश्लेषण करेंगे। जानें कि कैसे इन घटनाओं ने भारत के लिए सुरक्षा और कूटनीतिक चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं। क्या नेपाल का भविष्य सुरक्षित है? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
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नेपाल में जनाक्रोश: सत्ता परिवर्तन और भारत पर प्रभाव

नेपाल में जनाक्रोश और सत्ता परिवर्तन

नेपाल में जनाक्रोश: नेपाल में हालिया हिंसा और जनाक्रोश के चलते राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल रहा है। भविष्य में नेपाल का क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में राजनीतिक उथल-पुथल पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि अफगानिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश के बाद नेपाल चौथा ऐसा देश है, जहां जनाक्रोश और सामाजिक आंदोलनों के चलते सत्ता में बदलाव आया है।


भारत के लिए सुरक्षा और कूटनीतिक चुनौतियाँ

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, नेपाल सहित जिन देशों में हाल के वर्षों में सत्ता परिवर्तन हुए हैं, वे सभी भारत के पड़ोसी हैं। इन देशों में हो रहे अचानक बदलाव न केवल उनकी आंतरिक राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि भारत के लिए भी सुरक्षा और कूटनीतिक दृष्टि से कई चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहे हैं।


सत्ता परिवर्तन में समानताएं और अंतर

जानकारी के अनुसार, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और अफगानिस्तान में हुए सत्ता परिवर्तनों में कई समानताएं हैं। इन सभी देशों में लोग लंबे समय से सरकार के प्रति असंतुष्ट थे। भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट के कारण जनता में आक्रोश था, जिससे कानून व्यवस्था में गिरावट आई और लोग सड़कों पर उतर आए।


नेपाल में सत्ता का पतन

9 सितंबर का दिन नेपाल के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज होगा। हालाँकि, यह सत्ता परिवर्तन अचानक नहीं हुआ। यहाँ सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके खिलाफ युवाओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया। यह आंदोलन धीरे-धीरे सरकार के खिलाफ एक बड़े आंदोलन में बदल गया।


Gen-Z का आक्रोश

विरोध-प्रदर्शन ने तेजी से विकराल रूप ले लिया, जिससे देश की राजनीतिक व्यवस्था हिल गई। प्रदर्शनकारियों ने संसद, सरकारी भवनों और राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया। इस दौरान कई हिंसक झड़पें हुईं और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा।


अफगानिस्तान और श्रीलंका में विद्रोह के कारण

अफगानिस्तान में 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था। वहीं, श्रीलंका में 9 जुलाई 2022 को आर्थिक संकट के चलते प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को सत्ता छोड़ने पर मजबूर कर दिया।


बांग्लादेश में छात्र आंदोलन

मई 2024 में बांग्लादेश में छात्रों के विरोध ने एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया, जिसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा। यह घटनाएँ दर्शाती हैं कि जनता की आवाज को दबाने की कोशिशें लंबे समय तक सफल नहीं हो सकतीं।