नेपाल में युवा आंदोलन: जेन-जी ने सत्ता परिवर्तन की ओर बढ़ाया कदम

नेपाल में युवा आंदोलन का उभार
नेपाल में भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के चलते जेन-जी ने सड़कों पर उतरकर प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को सत्ता से हटने पर मजबूर कर दिया। काठमांडू में हुए हिंसक प्रदर्शनों में कई युवाओं की जान गई और सैकड़ों लोग घायल हुए, जिससे भारी जनाक्रोश उत्पन्न हुआ। इस स्थिति के चलते नेपाल के प्रधानमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
युवाओं का राजनीतिक सक्रियता में उभार
राजनीतिक उथल-पुथल के बाद नेपाल उन पड़ोसी देशों में शामिल हो गया है, जहां युवाओं ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है। जेन-जी ने 2025 में एशिया के कई देशों में आंदोलन किए हैं।
सोशल मीडिया का प्रभाव
युवाओं को देश का भविष्य माना जाता है। आज की युवा पीढ़ी, जो सोशल मीडिया पर काफी समय बिताती है, विभिन्न देशों में हालिया आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभा रही है। जेन-जी अब केवल आलोचक नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन में भी सक्रिय है। हालांकि, कई देशों में इन आंदोलनों ने हिंसक रूप भी धारण किया है, जिससे संपत्ति और जानमाल का नुकसान हुआ है।
युवाओं की आवाज़
युवाओं ने अपनी आवाज को देश और विदेश में पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करना सीख लिया है। उनकी इंटरनेट सक्रियता और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता एक नई राजनीतिक संस्कृति का निर्माण कर रही है। भविष्य में, यह जेन-जी पीढ़ी पारंपरिक राजनीतिक दलों के बजाय देश की राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
श्रीलंका और बांग्लादेश में जेन-जी का प्रभाव
नेपाल से पहले, श्रीलंका की जेन-जी ने जलवायु परिवर्तन, शिक्षा सुधार और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियानों को बढ़ावा दिया। 2025 में, श्रीलंका की संसद ने पूर्व राष्ट्रपति और उनके परिवारों को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया।
श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने भारी विरोध के बीच देश छोड़ दिया था। इसके बाद, बांग्लादेश में भी जेन-जी ने भ्रष्टाचार और लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग को लेकर प्रदर्शन किए, जिसके परिणामस्वरूप तत्कालीन पीएम शेख हसीना को सत्ता से बाहर होना पड़ा।
मंगोलिया और इंडोनेशिया में युवा आंदोलन
मंगोलिया में जेन-जी ने प्रधानमंत्री लुव्सन्नामस्रेन ओयुन-एर्डीन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए प्रदर्शन किए। इसके बाद, इंडोनेशिया में भी युवाओं ने महंगाई, बेरोजगारी और शिक्षा के बजट में कटौती के खिलाफ आवाज उठाई, जिससे राजनीतिक स्थिरता पर दबाव बढ़ा।