नेपाल में युवा आंदोलन: भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी

नेपाल का संकट और भारत पर प्रभाव
नेपाल में चल रहे घटनाक्रम भारत के लिए एक गंभीर खतरा बनते जा रहे हैं। श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ हमारी समानता नेपाल के साथ कहीं अधिक है। हम सभी की यही कामना है कि हमारे देश में ऐसा कोई हिंसक आंदोलन न हो। भारत का लोकतंत्र हमेशा ऐसी आशंकाओं को नकारता आया है, लेकिन यह तब संभव था जब लोकतंत्र वास्तव में प्रभावी था। चुनावों के माध्यम से बदलाव संभव था, लेकिन अब चुनावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं।
हाल ही में तीन पूर्व चुनाव आयुक्तों ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर संदेह जताया है।
युवाओं का आक्रोश
नेपाल के आंदोलनकारी युवा अपने फेसबुक पेजों पर लिख रहे हैं कि वे आखिरी पीढ़ी हैं जिन्हें बेवकूफ बनाया गया। यह आंदोलन इस बात का प्रतीक है कि युवाओं का धैर्य अब टूटने लगा है। शिक्षा और रोजगार की उम्मीदें दूर होती जा रही हैं, जिससे युवा वर्ग में निराशा बढ़ रही है।
समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में एक सिद्धांत है कि युवा अवस्था में खुशी का सबसे बड़ा स्तर होता है, लेकिन जब करियर और नौकरी की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं, तो गुस्सा और आक्रोश पैदा होता है।
नेपाल में आंदोलन का कारण
नेपाल में कई कारण हैं, जिनमें से एक सोशल मीडिया का प्रभाव है। हाल ही में, युवा संसद में घुसकर आगजनी कर रहे हैं और पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी को जिंदा जलाने की घटनाएं सामने आई हैं। यह सब उस समय हुआ जब सोशल मीडिया पर प्रतिबंध हटाया गया।
युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो गया है, जिससे उनके अंदर का आक्रोश फूट रहा है।
भारत में चुनावों की विश्वसनीयता
भारत में चुनावों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कर्नाटक में वोट चोरी के मामलों को उजागर किया है। बिहार में भी चुनावों में धांधली के आरोप लग रहे हैं।
यह सब अच्छे संकेत नहीं हैं। हिंसा हमारे देश में कभी भी आंदोलन का हिस्सा नहीं रही। गांधी की अहिंसा पर सवाल उठने लगे हैं, और नाथुराम गोडसे का समर्थन किया जा रहा है।
भविष्य की दिशा
1977 में भारत में पहला सत्ता परिवर्तन हुआ था, जब इंदिरा गांधी ने सत्ता सौंप दी थी। क्या आज कोई चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से हो रहे हैं? यह सवाल हर जगह उठ रहा है।
युवाओं को विश्वास होना चाहिए कि परिवर्तन चुनावों के माध्यम से ही संभव है, न कि हिंसक आंदोलनों के जरिए।