नेपाल में राजनीतिक संकट: राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का इस्तीफा

नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता
नेपाल की राजनीति: नेपाल में मंगलवार को राजनीतिक संकट अपने चरम पर पहुंच गया, जब राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल और प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। यह घटनाक्रम देश में बढ़ते भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों और जनता के आक्रोश के बीच हुआ, जिसने काठमांडू को अशांति के भंवर में धकेल दिया। हाल के दिनों में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खिलाफ जनता का आक्रोश सड़कों पर उतर आया है।
विशेष रूप से 'जेनरेशन Z' के युवाओं ने इस आंदोलन को नई ऊर्जा दी है। यह अशांति तब शुरू हुई, जब प्रधानमंत्री ओली ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर विवादास्पद प्रतिबंध लगाया था। हालांकि, हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद मंगलवार तड़के इस प्रतिबंध को हटा लिया गया। फिर भी, प्रदर्शनकारी कर्फ्यू तोड़ते हुए सुरक्षा बलों के साथ भिड़ रहे हैं। सोमवार को शुरू हुई हिंसा में अब तक कम से कम 22 लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों घायल हुए हैं। मंगलवार को भी यह हिंसा जारी रही।
इस्तीफों की श्रृंखला
इस्तीफों का सिलसिला
राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल के इस्तीफे के कुछ ही घंटों बाद, प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे में ओली ने कहा, “मैं देश में प्रतिकूल स्थिति को देखते हुए और संविधान के तहत राजनीतिक समाधान निकालने के लिए पद छोड़ रहा हूं।” यह बयान देश में स्थिरता की उम्मीदों को बल देता है, लेकिन मौजूदा हालात इसे चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।
काठमांडू में हिंसा और अराजकता
काठमांडू में हिंसा और अराजकता
इस्तीफों की खबर के बाद संसद के बाहर प्रदर्शनकारियों ने जश्न मनाया, लेकिन काठमांडू के कई हिस्सों में हिंसा और आगजनी का दौर जारी रहा। मौके पर मौजूद लोगों के अनुसार, ओली के निजी आवास सहित कई राजनेताओं के घरों को आग के हवाले कर दिया गया। सरकारी भवनों, विशेष रूप से सिंघा दरबार परिसर, जहां प्रमुख मंत्रालय स्थित हैं, को भी प्रदर्शनकारियों ने निशाना बनाया। इस हिंसा के कारण काठमांडू हवाई अड्डे को सुरक्षा चिंताओं के चलते बंद करना पड़ा।
भविष्य की अनिश्चितता
भविष्य की अनिश्चितता
नेपाल में यह राजनीतिक संकट ऐसे समय में गहराया है, जब देश पहले से ही आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों से जूझ रहा है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के इस्तीफे ने न केवल सरकार में नेतृत्व का शून्य पैदा किया है, बल्कि जनता के बीच अविश्वास को और गहरा किया है। प्रदर्शनकारियों की मांगें अब केवल भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की मांग कर रहे हैं।