नेशनल हेराल्ड मामले में अभिषेक मनु सिंघवी का जोरदार बचाव

नेशनल हेराल्ड केस में कोर्ट में बहस
नेशनल हेराल्ड मामला: 4 जुलाई को, वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी का प्रतिनिधित्व करते हुए कोर्ट में अपनी दलीलें पेश कीं। ईडी की ओर से दो दिनों तक बहस चली। इस दौरान, सिंघवी ने राउज एवेन्यू कोर्ट में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया, "यदि टाटा या बिड़ला ने एजेएल का अधिग्रहण किया होता, तो क्या इसे मनी लॉन्ड्रिंग कहा जाता?" उन्होंने कहा कि जब राजनीति प्राथमिकता लेती है और कानून अंतिम स्थान पर होता है, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है। सिंघवी ने यह भी कहा कि किसी भी कानून में यह नहीं लिखा है कि कोई व्यक्ति अपने द्वारा दिए गए कर्ज को वापस नहीं ले सकता।
क्या कोई इतना मूर्ख हो सकता है?
News18 के अनुसार, सिंघवी ने कहा कि कानून चाहता है कि एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) समाप्त हो। जो कुछ भी हुआ है, वह कई वर्षों में हुआ है। ये सभी लोन कांग्रेस द्वारा दिए गए थे जब एजेएल (एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड) गंभीर वित्तीय संकट में थी। किसी कंपनी को पुनर्जीवित करने के लिए शेयर ट्रांसफर करना और उसे फिर से खड़ा करना पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया है। उन्होंने सवाल उठाया, "क्या कोई इतनी बड़ी बेवकूफी करेगा?" और कहा, "जब सामने वाली कंपनी गैर-लाभकारी है, तो कोई मनी लॉन्ड्रिंग क्यों करेगा? क्या कोई इतना मूर्ख हो सकता है?"
कानून और राजनीति का टकराव
‘यहां कानून पीछे चला गया, राजनीति आगे आ गई’
अभिषेक मनु सिंघवी ने उदाहरण देते हुए कहा, "मान लीजिए अगर टाटा या बिड़ला समूह ने AJL का यह लोन लिया होता, तो क्या आप तब भी इसे मनी लॉन्ड्रिंग कहते? क्या तब भी आप कहेंगे कि अगर उन्होंने यह लोन गैर-लाभकारी कंपनी में लगाया तो यह मनी लॉन्ड्रिंग है?" उन्होंने यह भी कहा कि यदि AJL की कोई संपत्ति कहीं और ट्रांसफर की जाती, तो यह मनी लॉन्ड्रिंग होती। लेकिन यहां AJL की कोई संपत्ति कहीं नहीं गई। फिर यह मनी लॉन्ड्रिंग कैसे हो सकती है?" सिंघवी ने यह भी कहा कि यहां कानून पीछे चला गया है और राजनीति आगे आ गई है।