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नेहरू की भूमिका: भाजपा की दुविधा और ऐतिहासिक सच्चाई

इस लेख में भाजपा द्वारा पंडित नेहरू की राजनीतिक छवि को लेकर उठाए गए सवालों का विश्लेषण किया गया है। नेहरू को कभी महान नेता और कभी कमजोर नेता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। लेख में तीन महत्वपूर्ण कहानियों के माध्यम से नेहरू की स्थिति को समझने का प्रयास किया गया है, जो भाजपा की रणनीति और उनके ऐतिहासिक निर्णयों पर प्रकाश डालती हैं। क्या भाजपा नेहरू के निर्णयों के लिए सरदार पटेल और गांधी को जिम्मेदार ठहराने से बचती है? जानें इस लेख में।
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नेहरू की भूमिका: भाजपा की दुविधा और ऐतिहासिक सच्चाई

नेहरू की राजनीतिक छवि पर भाजपा का दृष्टिकोण

भाजपा के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू की राजनीतिक स्थिति एक जटिल मुद्दा है। कभी उन्हें एक महान नेता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, तो कभी उन्हें इतना कमजोर बताया जाता है कि वे अपने लिए समर्थन भी नहीं जुटा सके। भाजपा का कहना है कि नेहरू ने देश का विभाजन कराया और पहले प्रधानमंत्री बने, जबकि दूसरी ओर यह भी कहा जाता है कि कांग्रेस की प्रांतीय समितियों में से कोई भी उनके नाम का प्रस्ताव नहीं कर सका।


नेहरू की ताकत और कांग्रेस में उनकी स्थिति

जब नेहरू को यह साबित करने में कठिनाई हुई कि वे कांग्रेस की 15 प्रांतीय समितियों में से किसी एक से भी समर्थन प्राप्त कर सकें, तो यह सवाल उठता है कि विभाजन का निर्णय उन्होंने कैसे लिया। यदि महात्मा गांधी और सरदार पटेल सबसे प्रभावशाली नेता थे, तो क्या यह नहीं माना जाना चाहिए कि विभाजन के निर्णय में उनकी भूमिका अधिक थी?


तीन महत्वपूर्ण कहानियाँ

नेहरू की स्थिति को समझने के लिए तीन कहानियाँ महत्वपूर्ण हैं। पहली कहानी 1946 के कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव की है, जिसमें महात्मा गांधी ने नेहरू को अध्यक्ष बनाने का समर्थन किया, जबकि सरदार पटेल का नाम 12 समितियों द्वारा प्रस्तावित किया गया। दूसरी कहानी 1950 के कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव की है, जहां नेहरू के उम्मीदवार को पटेल के समर्थक ने हराया। तीसरी कहानी राष्ट्रपति चुनाव की है, जिसमें नेहरू अपनी पसंद के उम्मीदवार को नहीं बना सके।


भाजपा की रणनीति और नेहरू का विरोध

भाजपा नेहरू की छवि को नकारने और सरदार पटेल को श्रेय देने की रणनीति अपनाती है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने संसद में कहा कि भाजपा को नेहरू के बारे में एक बार में चर्चा कर लेनी चाहिए और फिर असली मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। लेकिन भाजपा इस विवाद को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।