पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: 5 वर्षीय बच्ची के दुष्कर्म और हत्या के दोषी को मिली उम्रकैद
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय
चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा के पलवल जिले में एक पांच साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अदालत ने दोषी की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। इसके साथ ही, पीड़ित परिवार के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए, अदालत ने जुर्माने की राशि को बढ़ाकर 30 लाख रुपये कर दिया है। यह राशि पीड़ित बच्ची के माता-पिता और भाई-बहनों के बीच समान रूप से बांटी जाएगी। अदालत ने कहा कि न्याय प्रणाली का उद्देश्य केवल सजा देना नहीं, बल्कि पीड़ित परिवार को हर संभव सहायता प्रदान करना भी है।
दोषी की मां को मिली राहत
जस्टिस अनूप चितकारा और जस्टिस सुखविंदर कौर की बेंच ने यह निर्णय ट्रायल कोर्ट द्वारा भेजे गए 'डेथ रेफरेंस' और दोषी की अपील पर सुनवाई के बाद दिया। इस मामले में एक चौंकाने वाला पहलू यह था कि दोषी की मां को बरी कर दिया गया, जिसे निचली अदालत ने सबूत मिटाने और अपने बेटे का साथ देने के लिए सात साल की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने कहा कि वह महिला केवल अपने 'राजा बेटे' को बचाने की कोशिश कर रही थी। भारतीय समाज में माताएं अक्सर अपने बेटों के प्रति अंधा मोह रखती हैं, इसलिए उसे सजा नहीं दी जा सकती।
घटना की गंभीरता
अदालत ने घटना की गंभीरता को देखते हुए कहा कि यह हत्या पूर्व नियोजित नहीं थी, बल्कि दुष्कर्म के सबूत मिटाने की घबराहट में की गई थी। 31 मई 2018 को हुई इस घटना में, दोषी, जो बच्ची के पिता के पास काम करता था, बच्ची को अपने घर ले गया और वहां उसके साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद उसने रसोइए वाले चाकू से वार कर उसकी हत्या कर दी और शव को आटे के ड्रम में छिपा दिया।
साक्ष्यों की मजबूती
हाई कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष ने साक्ष्यों को मजबूती से प्रस्तुत किया है। ग्रामीणों ने दोषी को बच्ची का हाथ पकड़े हुए देखा था और शव तथा ड्रम पर मिले खून के धब्बे डी.एन.ए. जांच में मेल खा गए थे। हालांकि, सजा तय करते समय हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में फांसी देना उचित नहीं होगा। समाज की सुरक्षा के लिए दोषी को जीवन भर जेल में रखना और समाज से दूर रखना ही सबसे उपयुक्त सजा है।
