पंजाब में 1993 के फर्जी मुठभेड़ मामले में पांच पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद

फर्जी मुठभेड़ मामले में सजा
चंडीगढ़- पंजाब के तरनतारन में 1993 के फर्जी मुठभेड़ मामले में दोषी ठहराए गए पांच पुलिस अधिकारियों को सीबीआई की विशेष अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। इनमें रिटायर्ड एसएसपी भूपेंद्रजीत सिंह और रिटायर्ड डीएसपी दविंदर सिंह शामिल हैं।
इन सभी पर IPC की धारा 302 और 120-B के तहत 7 लोगों की हत्या और आपराधिक साजिश का आरोप लगाया गया था। प्रारंभ में इस मामले में 10 पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को आरोपी बनाया गया था, लेकिन ट्रायल के दौरान 5 की मृत्यु हो गई। पीड़ित परिवारों के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने बताया कि सीबीआई ने 2002 में भूपेंद्रजीत सिंह और अन्य के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था।
इस मामले में गुरदेव सिंह, एसएचओ सरहाली, इंस्पेक्टर ज्ञान चंद, एएसआई देविंदर सिंह, और अन्य को नामजद किया गया था। हालांकि, 2010 से 2021 के बीच मामले की सुनवाई रुकी रही, जिसके कारण पांच आरोपियों की मृत्यु हो गई।
यह मामला 1993 का है, जिसमें 7 लोगों को दो अलग-अलग मुठभेड़ों में मारा गया था। इनमें से चार विशेष पुलिस अधिकारी थे। दोषियों ने 27 जून 1993 को लोगों को उनके घरों से उठाकर कई दिनों तक अवैध हिरासत में रखा और उन पर अत्याचार किया। 28 जुलाई 1993 को भूपेंद्रजीत सिंह के नेतृत्व में फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दिया गया।
तरनतारन के थाना वैरोवाल और थाना सहराली में दो अलग-अलग फर्जी पुलिस मुठभेड़ की FIR दर्ज की गईं। सुप्रीम कोर्ट के 12 दिसंबर 1996 के आदेश के बाद यह मामला सीबीआई को सौंपा गया। 2 जुलाई 1993 को पंजाब पुलिस ने दावा किया था कि तीन लोग सरकारी हथियारों के साथ फरार हो गए। इसके 10 दिन बाद, पुलिस ने एक मुठभेड़ की कहानी बनाई।
पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ को सही ठहराने के लिए झूठे दस्तावेज तैयार किए और एक मामला दर्ज करवाया। जांच के दौरान सीबीआई ने पाया कि मुठभेड़ फर्जी थी।