पंजाब में बाढ़: एक प्राकृतिक आपदा की कहानी
पंजाब में बाढ़ की गंभीर स्थिति
पंजाब इस समय एक गंभीर संकट का सामना कर रहा है, जिसने राज्य को कई वर्षों पीछे धकेल दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्राकृतिक आपदा 1988 की बाढ़ से भी अधिक विनाशकारी साबित हुई है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि 1300 से अधिक गांव बाढ़ के पानी में डूब गए हैं। लाखों लोग अपने घरों से बेघर हो गए हैं, फसले बर्बाद हो गई हैं, और बुनियादी ढांचे को भी भारी नुकसान पहुंचा है.बाढ़ की शुरुआत कैसे हुई? इस बार का मानसून कुछ अलग ही रूप में आया। अगस्त 2025 की शुरुआत में उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों, विशेषकर हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में, अत्यधिक बारिश हुई। नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ा और सतलुज, ब्यास, रावी जैसी प्रमुख नदियां खतरे के निशान को पार कर गईं। तीन बड़े डैम — पोंग, भाखड़ा और रंजीत सागर — कुछ ही दिनों में भर गए, जिसके कारण अतिरिक्त पानी छोड़ना पड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि निचले इलाकों में बाढ़ का प्रकोप बढ़ गया.
इस बाढ़ का मुख्य कारण क्या था? सरकारी और स्वतंत्र रिपोर्टों के अनुसार, इस बार की बाढ़ का बड़ा हिस्सा असामान्य बारिश के कारण हुआ। लगभग 70 प्रतिशत नुकसान बारिश के कारण हुआ, जबकि शेष डैम से निकले पानी के कारण। नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में इतनी अधिक बारिश हुई कि कुछ नदियां 4 लाख क्यूसेक से अधिक बहाव के साथ बहने लगीं। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है — बारिश अब धीरे-धीरे नहीं, बल्कि अचानक और सीमित समय में हो रही है.
क्या मानवीय लापरवाही ने भी स्थिति को बिगाड़ा? हां, हर साल बाढ़ की चेतावनी दी जाती है, लेकिन ज़मीनी तैयारियां अक्सर अधूरी रहती हैं। पंजाब में कई वर्षों से नहरों और नालों की सफाई नहीं की गई है। नदियों के तल में गाद जमा हो गई है, जिससे पानी का बहाव रुकता है। कई तटबंध और बांध समय पर मरम्मत के अभाव में कमजोर हो चुके हैं. इसके अलावा, जंगलों की कटाई, अवैध खनन और अतिक्रमण ने नदियों के आसपास के इकोसिस्टम को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। खेत, सड़कें और रेलवे लाइनें उन स्थानों पर बनाई गईं हैं जहां से पानी का प्राकृतिक बहाव होता था। इस कारण बाढ़ का पानी कई गांवों में दिनों तक भरा रहा.